मार्क्सवाद दुनिया को समझने का विज्ञान है और उसे बदलने की विचारधारा जो श्रमजीवियों द्वारा परजीवियों के शासन को समाप्त कर एक वर्गविहीन और फलस्वरूप राज्यविहीन समाज स्थापित करना चाहती है। जैसे सामंतवाद का विकल्प पूंजीीवाद बना वैसे ही पूंजीवाद का विकल्प अंततः साम्यवाद वनेगा, जिसमें हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार काम (श्रम) करेगा और हर किसी को जरूरत के अनुसार फल मिलेगा। सामंतवाद से पूंजी वाद में संक्रमण एक वर्ग समाज से दूसरे वर्ग समाज में संक्रमण है जो कि पिछले 600 सालों से चल रहा है लेकिन अभी तक पूरा नहीं हुआ, भारत जैसे देशों में वर्णाश्रमी सामंतवाद (एसियाटिक मोड) के अवशेष अभी भी मौजूदसही नहीं हैं, बल्कि सामाजिक चेतना के जनवादीकरण के रास्ते की रुकावटें बने हुए हैं। यूरोप की तरह यहां कोई नवजागरण और प्रबोधन (एनलाइटेनमेंट) की तरह सामाजिक क्रांति नहीं हुई जिससे समाज का जन्म आधारित विभाजन समाप्त नहीं हुआ जिसे अब जयभीम - लालसलाम नारे के साथ आर्थिक क्रांति से जोड़ने की जरूरत है। पूंजीवाद से साम्यवाद का संक्रमण गुणात्मक रूप से भिन्न, एक वर्ग समाज से वर्गविहीन समाज में संक्रमण होगा इसलिए जटिल। यदि रूसी क्रांति को शुरुआती विंदु माना जाए तो यह प्रक्रिया मुश्किल से 100 साल पुरानी है और प्रतिक्रांतिकारी ताकतों के हमले झेल रहीी है। साम्यवाद भविष्य का समाज है, इसलिए मार्क्सवाद का मर्सिया पढ़ने वालों को अपने इतिहासबोध पर सवाल करना चाहिए। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का एक नियम है कि जिसका भी अस्तित्व है उसका अंत निश्चित है, पूंजीवाद इसका अपवाद नहीं है, न ही वर्णाश्रमवाद या मर्दवाद। निरंतर चल रहे क्रमिक मात्रात्मक परिवर्तन परिपक्व होकर क्रांतिकारी गुणात्मक परिवर्तन में तब्दील होंगे। आज बड़ा-से-बड़ा जातिवादी भी खुलकर नहीं कह सकता कि वह जातीय भेदभाव को मानता है, उसी तरह जैसे बड़ा-से-बड़ा मर्दवादी यह नहीं कह सकता कि वह बेटा-बेटी में फर्क करता है, एक बेटे के लिए 5 बेटियां भले पैदा कर ले। यह जाति उन्मूलन की विचारधारा और स्त्रीवाद की सैद्धांतिक जीत है, जिसकी व्यवहार में तब्दीली समय का मामला है। अन्याय के विरुद्ध हर संघर्ष जारी वर्ग संघर्ष का ही हिस्सा है।
जय भीम लाल सलाम।इंकिलाब जिंदाबाद।
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