Thursday, July 21, 2022

फुटनोट 366 (सांस पर टैक्स)

 कल सुबह की सैर में पार्क में एक मध्य वर्गीय दिखने वाले युवा दंपति की बातचीत सुनने को मिली।

पत्नी: गैस का दाम तो बढ़ा ही था, सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं, रोटी-दाल-छाछ पर भी सरकार ने टैक्स लगाकर गरीबों का जीना दूभर कर दिया है।

पति: तुम क्यों गरीबों की रहनुमा बन रही हो? महीने में खाने-पीने के खर्च में हजार-दो हजार बढ़ जाने से हमें क्या फर्क पड़ता है। सरकार को देश पर खर्चने के लिए भी तो पैसे चाहिए। कितना तो विश्बैंक और आईएमएफ से कर्ज ले चुकी है। रूपए की औकात घटने के साथ देनदारी भी तो बढ़ गयी है।

पत्नी: कर्ज का भार भी तो गरीबों पर ही पड़ेगा।

पति: ज्यादा मत बोलो नहीं तो देश द्रोह में बंद हो जाओगी, तुम्हारे साथ मुझ पर भी मुसीबत आएगी। देखती नहीं हो, फिल्म निर्माता अविनाश दास को गुजरात पुलिस मुंबई से पकड़कर ले गयी, उसने शाह जी के साथ झारखंड की घूसखोर अधिकारी की तस्वीर सोसल मीडिया पर शेयर किया था। शाह जी तब फोटो तब की है जब वह घऊसखोरी में पकड़ी नहीं गयी थी।

पत्नी: इस बात का दाल-रोटी-छाछ पर टैक्स से क्या मतलब?

पति: किसी भी बात का किसी भी बात से मतलब हो सकता है. कुल मिलाकर टैक्स की बात भी तो सरकार की बुराई ही है।

पत्नी: सही कह रहे हो। चलो खुली हवा में सांस लेने पर तो अभी टैक्स नहीं लगा।

पति: जोर से मत बोलो नहीं तो बड़े-बड़े पार्कों की तरह इसमें भी घुसने का टिकट लग जाएगा।

पत्नी: बड़े-बड़े पार्कों में घूमने का टैक्स लगता है?

पति: हां और बेच पर बैठने का अलग से। एकपार्क के बेंचों पर कीलें निकली रहती हैं, उनमें डिब्बे होते हैं जिनमें सिक्के डालने से कुछ समय के लिए कीलें अंदर चली जाती हैं और समय खत्म होते ही ऊपर निकल आती हैं।

पति-पत्नी की बातचीत में दखलअंदाजी करना वाजिब नहीं समझा नहीं तो उस पार्क का पता पूछता।

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