हर देश में ईशनिंदा (ब्लास्फेमी) कानून रद्द हो जाना चाहिए। धर्मांधता का नशा बहुत तगड़ा और बहुत खतरनाक होता है। प्राचीन यूनान के एथेंस की न्यायिक सभा में सुकरात पर नास्तिकता पैलाने या प्रकारांतर से ईशनिंदा के आरोप में मुकदमा चलाकर मौत की सजा दी गयी। मुकदमे के दौरान न्यायिक सभा के बाहर भीड़ (धर्मोंमादी जनता) सुकरात को मृत्युदंड की मांग के नारे लगारही थी। अपने खगोलीय अन्वेषण के लिए गैलीलियो को चर्च से माफी मांगने के बावजूद आजीवन नजरबंदी की यातना झेलनी पड़ी थी। दार्शनिक-वैज्ञानिक ब्रूनो पर रोमन चर्च ने 7 साल मुकदमा चलाकर उन्हें जिंदा जलाकर मौत की सजा दी और जब उन्हें रोम के चौराहे पर जलाया जा रहा था तो भीड़ (धर्मोंमादी जनता) उल्लास से तमाशा देख रही थी। पंसारे, डाभोलकर, कलबुर्गी, गौरी लंकेश, कन्हैयालाल और उमेश कोल्हे की हत्याएं धर्मांधता के नशे की ताजा बर्बर परिणतियां हैं।
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