इतिहास की गाड़ी में रिवर्स गीयर नहीं होता (कभी कभी छोटा-बड़ा यू टर्न जरूर ले सकती है) तथा मस्तिष्क के विकास की दृष्टि से हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी अनुभव सीमा (exposure)का फलक बढ़ता जाता है। पाषाणयुग के हमारे पूर्वज कितने भी उन्नत क्यों न रहे हों, अपने साइबर युग के पिछड़े वंशजों से भी पीछे ही रहेंगे। बौद्धिक तथा आर्थिक-सााजिक उन्नयन समानुपातिक होते हैं, दोनों में करण-कारण का दोतरफा संबंध हैं। वैदिक, यूनानी तथा चीनी सभ्यताएं , ज्ञान-विज्ञान की दृष्टि से उन्नत सभ्यताएं थीं। पश्चिम का उन्नयन 14वीं-15वीं शताब्दी से शुरू होता है और ज्ञान-विज्ञान की उन्नति के ही अनुपात में वे आर्थिक-सामाजिक तथा सामरिक शक्ति के रूप में भी आगे बढ़े। मैं दुनिया पर यूरोपीय वर्चस्व को उचित नहीं बता रहा हूं बल्कि उसे ज्ञान-विज्ञान से उपजी तकनीकी उपलब्धियों का अमानवीय इस्तेमाल मानता हूं, लेकिन यह तो अब इतिहास बन चुका है। मध्य युग यूरोप-भारत समेत तमाम दुनिया के लिए अंधा युग था। यूरोप नवजागरण और प्रबोधन (enlightenment) क्रांतियों को जरिए इससे उबर कर आगे बढ़ गया। हम ऐसी किन्ही नवजागरण क्रांतियों के अभाव में मध्ययुगीन अंधे युग को और गहन बनाते जा रहे हैं। वैज्ञानिक चेतना विकसित करने की बजाय हम इतिहास के पुनर्मिथकीकरण में लगे हैं। एक सज्जन ने 28 लाख से से भी पहले उन्नत धातुओं की मूर्तियों का अन्वेषण कर लिया जबकि लाखों साल के पाषाणयुग के अंत की शुरुआत 7000 साल पहले मानी जाती है। वैज्ञानिक चेतना आर्थिक-सामाजिक उन्नति की पूर्व शर्त है और उसका मूल मंत्र है, 'सत्य वही जो प्रमाणित किया जा सके'।
जहां तक 2000 सालों से आक्रमणों के चलते हमारे वैज्ञानिक अन्वेषणों की प्रगति के बाधित होने की बात है तो आक्रमण या युद्ध से वैज्ञानिक अन्वेषण या ज्ञान-विज्ञान की प्रगति से सीधा रिश्ता नहीं है। प्राचीन वैदिक कुटुंब और उत्तरवैदिक राज्य आपस में लड़ते रहते थे। प्राचीन यूनानी नगर राज्य आपस में और विदेशियों से लगातार लड़ते रहते थे। आधुनिक (15वीं-16वीं शताब्दी के बाद) यूरोपीय इतिहास युद्धों का इतिहास है। दरअसल ऐतिहासिक रूप से वैज्ञानिक अन्वेषण से निकली तकनीक (टेक्नॉलजी) का उपयोग पहले हथियार बनाने में होता है फिर औजार। लोहे की खोज का इस्तेमाल पहले तलवार-तीर बनाने में हुआ फिर फावड़ा और हथौड़ा बनाने में, बारूद का अनवेषण पहले अग्नेयास्त्र बनाने में हुआ फिर ऊर्जा उत्पादन में। वैज्ञानिक अन्वेषण के लिए वैज्ञानिक सोच जरूरी है, जिसके लिए जरूरी है अंधविश्वासों की मिथ्या चेतना से मुक्ति।
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