मेरा भी गांव मझुई के किनारे है। मैं बड़की बाढ़ (1955) में 1-2 महीने का था, मां-दादी बताती थीं कि बहुत ऊंचाई पर होने के नाते हमारे घर में तो पानी नहीं घुसा था लेकिन बाकियों के साथ हमारे घर वाले भी बाग में चले गए थे। बचपन में एक बार बाढ़ के पानी में डूबते डूबते बचा था। 1971 की बाढ़ में तिघरा नामक गांव के पास टौंस और मझुई मिलकर बह रही थीं, सड़क पर नाव चल रही थी। पहले जून में भी नहाने-तैरने भर का बहता पानी रहता था, अब तो अक्टूबर-नवंबर तक मझुई सूख जाती है।
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