शिक्षक बनना बिरले लोगों की ही प्रथम प्राथमिकता होती थी/है। बीएससी करते हुए, मैंने जब प्रतिस्पर्धी परीक्षाएं न देने का फैसला किया तो सभी प्रोफेसन्स पर विचार करने के बाद मुझे लगा अध्यापन ही मेरे लिए उपयुक्त है। उसके बाद नौकरी की मेरी दूसरी प्रथमिकता कोई रही ही नहीं। बीएससी में पिताजी से पैसा लेना बंद करने के बाद गणित का ट्यूसन पढ़ाकर रोजी कमाना शुरू किया और महसूस किया कि गणित जानने वाला किसी शहर में भूखों नहीं मर सकता। 1980 से जेएनयू में राजनीति में शोध करते हुए डीपीएस में गणित पढ़ाता था। 1985 में डीपीएस छोड़ने के बाद गणित से रोजी न कमाने का निर्णय किया। विवि में नौकरी मिलने तक कलम की मजदूरी से घर चलाता रहा।
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