Rajkishore Prasad Singh जी। अवश्य, पहले भी लिखता रहा हूं, आगे भी लिखूंगा। टाइपराइटर वाले जमाने में पार्टी औरवर्ग संघर्ष पर एक लंबा लेख लिखा था, कंप्यूटर पर टाइप करने को दिया हूं, शेयर करूंगा। संसदीय राजनीति के लिए भी कम्युनिस्ट पार्टियों के पास धनबल-बाहुबल के अभाव में जनबल ही एकमात्र संबल है, जिसे जनसंघर्षों से ही तैयार किया जा सकता है। कम्युनिस्ट पार्टी जनसंघर्षों से तैयार जनबल के चलते प्रमुख विपक्षी पार्टी थी मगर संसदीय विचलन में चुनावी आधार के संख्याबल को क्रांतिकारी सामाजिक चेतना से लैस जनबल में बदलने में नाकाम रही और इसका संख्याबल भाजपा का संख्याबल बन गया। यहां ही नहीं इसी कारण दुनिया की सभी कम्युनिस्ट पार्टियां हाशिए पर खिसक गयीं। मुझे याद नहीं आ रहा है कि पिछले 4 दशकों में सीपीआई-सीपीयम ने कोई बड़ा जनांदोलन खड़ा किया हो। लिबरेसन भी उसी दिशा में अग्रसर है।
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