Santosh Parivartak अभी एक लंबा कमेंट लिखा था गायब हो गया। ब्राह्मणवादी पूंजीवाद से पार पाने की कुंजी मेरे पास होती तो क्या बात थी? ब्राह्मणवाद हिंदुत्व का आवरण धारण कर खुद को राष्ट्रवाद के रूप में पेश कर रहा है। पूर्वी उप्र में दुर्गापूजा निजी मामला था अब गांव गांव आक्रामक पंडाल लगते हैं इनमें मध्यम तथा छोटी समझी जाने वाली जातियों की भारी भागीदारी चिंता का विषय है। पिछले 2 दशकों में दलित-पिछड़ों में हिंदूकरण (सांप्रदायिककरण) तेजी से बढ़ा है। इसमें सामाजिक न्यायवादियों की सहायक भूमिका रही है। ब्राह्मणवाद (हिंदू जाति-व्यवस्था) और पूंजीवाद के पिरामिडाकार ढांचों में एक उल्लेखनीय समानता यह है कि दोनों में सबसे नीचे वाले को छोड़कर हक किसी को अपने से नीचे देखने को कोई-न-कोई मिल जाता है। दिसंबर में दिल के दौरे के बाद कुछ लिख नहीं पाया हूं, इस पर गंभीरता से लिखना है। बीमारी लगता है, मनोविज्ञान में घुस जाती है, निकालने के प्रयास में हूं। मानवता की सेवा में लगे हम सब सहयात्रियों में गंभीर विमर्श की और सामाजिक चेतना के जनवादीकरण में यथासंभव लगातार सक्रियता की जरूरत है।
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