सांप्रदायिकता और जातिवाद के उन्मूलन के लिए जरू,री है वैज्ञानिक शिक्षा, मनुष्यता की दीक्षा। नास्तिकता किसी के अच्छे इंसान होने की गारंटी नहीं है, बल्कि यदि कोई नास्तिक स्व के स्वार्थबोध को स्व के परमार्थबोध पर तरजीह देता है तो समाज के लिए आस्तिक से भी खतरनाक हो जाता है।
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