मैं वेद विरोधी नहीं हूं, वेद को अपने समतामूलक, पशुपालक-चरवाहे ऋगवैदिक पूर्वजों की अमूल्य विरासत मानता हूं। बिना पढ़े उसे सब ज्ञान का श्रोत मानने वाले ब्राह्मणवादी पोंगापंथियों का विरोधी हूं। चरवाही युग के हमारे पूर्वज हमसे ज्यादा बुद्धिमान नहीं हो सकते। ज्ञान निरंतर प्रक्रिया है, पोंगापंथी ताकतें अतीत में महानताओं के अन्वेषण के प्रपंच से भविष्य के खिलाफ, जानबूझकर भी लेकिन अक्सर अनजाने में, जहालत के प्रसार की साजिश करते हैं। ज्ञान-विज्ञान में भारत की अधोगति अब हिंदुत्व का चोला पहन चुकी इसी ब्राह्मणवादी साजिश का नतीजा है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment