भक्त विवेकशून्य तो होता ही है
क्रूर भी होता है
पिता की भक्ति में
परसुराम अपनी मां की हत्या कर देता है
राम पिता की भक्ति में
बिना शर्त अंध आज्ञाकारिता में
वनवासी बन जाता है
एक लड़की के प्रणय-निवेदन करने पर
उसके नाक-कान काट लेता है
छिपकर अकारण बलि की हत्या करता है
और लंका में भीषण नरसंहार मचाता है
धोखे से रावण की हत्या कर
सीता की अग्नि परीक्षा रचाता है।
वर्णाश्रमी मर्दवाद की भक्ति में
गर्भवती पत्नी को घर से निकाल देता है
और ब्राह्मणवादी भक्तिभाव में
ऋषि संबूक की हत्या कर देता है।
माता-पिता की भक्ति में
श्रवण कुमार जीवन उन्हे कंधे पर ढोने में नष्ट कर देता है
अपना जीवन जिए बिना दशरथ के हाथों मारा जाता है।
भक्तिभाव आस्था की वेदी पर
विवेक की बलि चढ़ाता है
मनुष्योचित विवेकभाव को छोड़
वापस पशुकुल में चला जाता है।
(ईमि: 04.12.2018)
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