Saturday, May 6, 2017

एक वर्दीधारी की पीड़ा

पर कतर दो हर उस परिंदें का
जो अपने मन की बात करे
भूल कर उड़ान की निर्दिष्ट दिशा और ऊंचाई
अपने मन से परवाज भरे
नई ऊंचाइयों का आगाज करे
है जो भी पुलिस का मुलाजिम
वह सिर्फ वही बात करे
लिखी या अलिखी है जो कुर्सी की पटकथा में
उससे अलग बोले नहीं कोई संवाद
जब पहनाती है कुर्सी वर्दी किसी इंसान को
गिरवी रखवा लेती है वह इंसानी प्रवृत्ति
अलग करती है जो इंसान को पशुकुल से
आप जान ही गये गिरवी रत्न का नाम
सोचने का अधिकार
वैसे आचारसंहिता का यह संविदा
अदृश्य अक्षरों में लिखा होता है
वर्दी पहनकर सोचना जुर्म है
सोचकर बोलना और भी बड़ा जुर्म है
और
कुर्सी का रोज खोलना महानतम
करने लगेगा अगर वर्दीधारी
हुक्मतालीमी में अलिखित संविदा का उल्लंघन
कायम होगी खतरनाक मिशाल
खतरे में पड़ जाएगी राष्ट्रवाद की सुरक्षा
इसलिए बाकी वर्दीधारियों को देना होगा संदेश
सोचने वाले वर्दीधारियों की वर्दियां उतारकर
वरना
कतारें लग जाएंगी
तेजबहादुर यादव और वर्षा डोगरे जैसों की
जगजाहिर हो जाएगी राष्ट्रीय सुरक्षा की गोपनीयता
और खतरे में पड़ जाएगी राष्ट्रवाद की सुरक्षा
एक ने
रोटी सी मामुली चीज को तूल देकर
तोड़ी अलिखित संविदा की शपथ
दूसरी
मार न सकी अपनी अंतरात्मा
और आदिवासी लड़कियों के साथ समानुभूति
रो पड़ी देख देख इंसानों के साथ इंसानी बर्बरता
और तोड़ दी वर्दी पहनकर न रोने की वर्जना
अंरात्मा के रोने की मनाही भी
उसी अलिखित संविदा का एक अनुच्छेद है
(काम छोड़कर कलम फिर आवारा हो गया, बहुत दिनों बाद इसने यह हरकत की है, इसलिए माफ)


(ईमि:07.05.2017)

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