वैसे जनेऊ तोड़कर ब्राह्मणवाद के निषेध की मेरी बात में कुछ रूपक और कुछ अतिरंजना है. 1960 के दशक में कर्मकांडी परिवेश में पले गांव के, साल भर से छोटे कस्बे में रहे, एक 13 साल के ब्राह्मण बालक की सामाजिक चेतना विचारधारा समझने की नहीं रही होगी. मुझे लगता है कि प्रवृत्तिगत उपयोगितावाद की भावना प्रमुख कारण था. कई लोगों ने समझाने की कोशिस की थी लेकिन कोई भी संतोषजनक कारण नहीं बता पाया और मुझे 3 धागे अनावश्यक लगे. चुटिया भी उसी साल काट दिया. 17-18 साल की उम्र तक नास्तिकता की यात्रा के दौरान लगता था कि शिक्षा के प्रसार से जनेऊ तोड़कर बाभन से इंसान बनने वालों की तादात बढ़ती जाएगी लेकिन हुआ उल्टा, नये नये जनेऊ पहनने वाले नवब्रह्मणों की संख्या बढ़ती जा रही है.
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