यह उन लोगों के लिए नहीं है जो बाभन या अहीर से इंसान बन चुके हैं. सही कह रहे हैं गुंडों की जाति नहीं होती, गुंडे जाति का इस्तेमाल गुंडागर्दी के लिए करते हैं. आजकल, भगवाधारी लंपट के मुख्यमंत्री बनते ही पूर्वी उत्तरप्रदेश के तमाम तथाकथित सवर्ण भाजपा द्वारा बांटे गए भगवा गमछा लपेट, मोटरसाइकिल के आगे नंबरप्लेट की जगह जयबजरंगबली लिख अपनी गुंडागर्दी का इजहार कर रहे हैं, बाकी सब डरे हुए हैं. यही हाल अखिलेश-मुलायम राज में था. अभी मैं अपने गांव से लौटा हूं तमाम जाहिल लंपट देशभक्ति की सनद बांट रहे हैं, जैसे देश उनके बाप का हो. मैंने सिर्फ यही कहा अगर मुलायम-अखिलेश गुंडागर्दी पर रोक लगाते और दंगों में संघी लंपटों का अप्रत्यक्ष साथ न देते और सामंती उत्सवों से बचते, तो शायद यह हाल न होती. यह पोस्ट किसी की पोस्ट पर कमेंट था और ध्यान से पढ़ें, यह जाति को मजबूत करने की नहीं, तोड़ने की है। मैं बहुत बार कह चुका हूं कि मैंने तो 13 साल में जनेऊ तोड़कर बाभन से इंसान बनना शुरू कर दिया था, लेकिन ज्यादातर बाभन इंसान नहीं बन पाए हैं. अस्मिता की राजनीति अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभा चुकी है अब सामाजिक चेतना के जनवादीकरण, यानि वर्ग चेतना की जरूरत है. हम कैसा ज्ञान दे रहे हैं कि तमाम लोग पीयचडी करके भी जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता की प्रवृत्तियों से उभर नहीं पाते. बाभन से इंसान बनने का मुहावरा रूपक के तौर पर पढ़िए.
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