चुनाव आयोग, नीति आयोग, रिजर्व बैंक...... सारी संवैधानिक संस्थाएं 'प्रतिबद्ध' होती जा रही हैं या हो गयी हैं. भारतीय समाज विज्ञान परिषद के नव-नियुक्त मुखिया ने सामाजिक शोध-क्षेत्र से मैकालियन और मार्क्सियन विद्वानों द्वारा 'विकृत' धारा को नेस्त-नाबूद करने की कसम खाई है क्योंकि ये 'मुसलमान शासकों द्वारा' चालू की गयी मर्दवादी और जाति-पांत की बुराइयों को भारतीय बताती हैं. संस्कृति भारती आरयसयस की एक यनजीओ है जो '8000' साल पहले मनु महराज के पुण्य विचारों में 5500 साल पहले दलित विरोधी और नारी विरोधी विकृतियां जोड़कर मनुस्मृति को बदनाम किया जा रहा है और उन्होंने संस्कृतिमंत्रालय को इस पर नए सिरे से शोध की एक परियोजना भी सौंपी है जिसका मकसद मनुस्मृति से गंदी बातें मिटाकर उसे पवित्र करने का है. हम इतिहास के अंधे दौर से गुजर रहे हैं जहां झूठ की तूती बोलती है और विवेक का बलिदान होता है. आने वाली पीढ़ियां जब इस दौर का इतिहास पढ़ेंगी तो अपने पूर्वजों पर वैसे ही शर्म करेंगी जैसे हम मनुस्मृति की अमानवीय विरासत पर करते हैं.
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