Ashok Verma की इस पोस्ट पर इसके नीचे मेरा कमेंट:
यह कहानी हम सबने कई बार पढ़ी है, लेकिन यह इतनी महत्त्वपूर्ण है कि आज एक बार फिर:
केन्या के सुप्रसिद्ध धावक अबेल मुताई आलंपिक प्रतियोगिता के अंतिम राउंड मे दौड़ते वक्त अंतिम लाइन से एक मीटर ही दूर थे और उनके सभी प्रतिस्पर्धी पीछे थे। अबेल ने स्वर्ण पदक लगभग जीत ही लिया था, इतने में कुछ गलतफहमी के कारण वे अंतिम रेखा समझकर एक मीटर पहले ही रुक गए। उनके पीछे आने वाले स्पेन के इव्हान फर्नांडिस के ध्यान में आया कि अंतिम रेखा समझ नहीं आने की वजह से वह पहले ही रुक गए। उसने चिल्लाकर अबेल को आगे जाने के लिए कहा लेकिन स्पेनिश नहीं समझने की वजह से वह नहीं हिला। आखिर में इव्हान ने उसे धकेलकर अंतिम रेखा तक पहुंचा दिया। इस कारण अबेल का प्रथम तथा इव्हान का दूसरा स्थान आया।
पत्रकारों ने इव्हान से पूछा "तुमने ऐसा क्यों किया ? मौका मिलने के बावजूद तुमने प्रथम क्रमांक क्यों गंवाया ?"
इव्हान ने कहा "मेरा सपना है कि हम एक दिन ऐसी मानवजाति बनाएंगे जो एक दूसरे को मदद करेगी ना कि उसकी भूल से फायदा उठाएगी। और मैंने प्रथम स्था नहीं गंवाया।
पत्रकार ने फिर कहा "लेकिन तुमने केनियन प्रतिस्पर्धी को धकेलकर आगे लाया।
इसपर इव्हान ने कहा "वह प्रथम था ही। यह प्रतियोगिता उसी की थी।"
पत्रकार ने फिर कहा, "लेकिन तुम स्वर्ण पदक जीत सकते थे।"
इव्हान ने कहा,
"उस जीतने का क्या अर्थ होता! मेरे पदक को सम्मान मिलता ? मेरी मां ने मुझे क्या कहा होता ?
संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आगे जाते रहते हैं. मैंने अगली पीढ़ी को क्या दिया होता ? दूसरों की दुर्बलता या अज्ञान का फायदा न उठाते हुए उनको मदद करने की सीख मेरी मां ने मुझे दी है."
मैं अपने स्टूडेंट्स को ऐसी ही मानवीय समानुभूतिक संवेदना की सीख देता था। इह्वान की मानवीय समानुभूतिक सोच प्रशंसनीय है। ज्यादातर भारतीय मजबूरी का फायदा उठाते हैं, मजबूरी में सहायता नहीं करते। कोरोना काल में अस्पताल 500 की दवा 500 में बेच रहे थे। ऑक्सीजन की कालाबाजारी कर रहे थे। एक बार मोटर साइकिल दुर्घटना में मेरे पैर में प्लास्टर लगा था, ऑटो वाले मनमाना किराया मांगते थे, मैं उन्हें डॉंट कर बैशाखियों पर चल देता था।
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