Saturday, April 6, 2024

बेतरतीब 176 (जोगी)

 "हम लोगों का बचपन लगभग समकालीन ही रहा है,मुझे भी भगवा भेष में सारंगी बजाकर गीत गाते घर घर जाकर भीख मांगते जोगी याद हैं। हम उन्हें जोगी बाबा कहते थे।लोग उन्हें बैठने को कहते और जलपान का आग्रह करते लेकिन वे कभी कभी किन्हीं के दुआर पर बैठकर पानी पीते।वे ङर टोले (जातियों) के घरों पर जाते।लोग उन्हें सम्मान से भीख देते थे।हमारे गांव में एक जोगी बच्चों में बहुत लोकप्रिय थे।बाग में एक नीम के चबूतरे पर बैठकर फरमाइश पर गीत सुनाते।मुझे सारंगी बजाना सिखाने की कोशिस करते लेकिन शून्य संगीत बोध के चलते मैं सीख न सका।

उनके गीत तो कोई याद नहीं है,लेकिन अच्छे लगते।सही कह रहे हैं,नाथ संप्रदाय के जोगियों में हिंदू मुसलमान दोनों होते थे।वे जाति-धर्म का विचार किए बिना किसी के यहां भी भोजन कर लेते थे, लेकिन अक्सर वे किसी पेड़ के नीचे अहरा लगाकर अपना भोजन खुद बनाते। वे लौकी के बने कमंडल किस्म के बर्तन में पानी लिए रहते थे।
एक घटना मुझे आज भी याद है।कई मां-बाप मूर्खता में बच्चों को डराते थे कि ये कर लो नहीं तो जोगी बाबा पकड़ ले जाएंगे।अवचेतन पर इसका कुछ प्रभाव था।14-15 साल की उम्र में (1969) एक बार साइकिल से एक दूर की रिश्तेदारी से लौट रहा था।आज सोचने पर ताज्जुब होता है कि इतनी दूर (35-40 किमी) हम लोग साइकिल से आते-जाते थे।
रास्ते में एक बाग में महुआ के नीचे 3 जोगी अहरा लगा रहे थे और बगल में कुंए पर लोटा-डोरी रखा था।मैं पानी पीने रुका तो एक ने पास आने का इशारा किया।बचपन का अवचेतन के डर से थोड़ा सशंकित तो हुआ लेकिन चला गया।एक ने मुझे बैठाकर सारंगी की लय पर कोई गीत सुनाना शुरू किया और दो अहरे में लिट्टी बनाकर डाल रहे थे।उपले को सजा के चूल्हा बनाया जाता था उस पर एक हंडिया में दाल और उसके ऊपर दूसरी में चावल बनने को रखा जाता और अहरे की आग में आलू-बैगन और भौरी (आंटे का गोला) डाल दिया जाता।दाल आग के ताप से पकती और चावल उसके भाप से।हमारे यहां भौरी बनती थी लेकिन बलिया-देवरिया में सत्तू डालकर लिट्टी।उनमें से एक जोगी शायद बलिया के थे।मैं सारंगी पर गीत सुनने में इतना मगन हो गया कि पता ही न चला कि दो जोगी बाबाओं ने कब पूरा भोजन-दाल-भात-लिट्टी- चोखा) तैयार।
ढाख के पत्ते के पत्तल-दोने की थाली कटोरी में खाए उस भोजन की याद आज 53-54 साल बाद भी मन में है।जीवन में पहली बार लिट्टी खाया था।इतिहास की विडंबना देखिए कि वर्णाश्रमी पाखंड और कट्टरता के विरुद्ध गोरखनाथ पीठ से शुरू हुआ नाथ आंदोलन आज हिंदुत्व कट्टरपंथ की विद्रूपताओं का वाहक बन गया है।"
(07-04-2023-06)

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