एक जनपक्षीय विद्वान मित्र ने एक विमर्श में अपनी अपनी जातीय पहचान छोड़कर संवैधानिक जाति (अंबेडकर) अपनाने की बात की और अंबेडकर की मिशाल दी जिन्होंने हिंद धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया।
या जाति-धर्म छोड़कर नास्तिक बन जाएगा, जैसा भगत सिंह ने किया था और जातीय-धार्मिक-क्षेत्रीय पहचान छोड़कर विवेकसम्मत, इंसानियत की पहचान बनाएगा तथा किसी अलौकिक शक्ति पर भरोसे की बैशाखी पर चलने की बजाय आत्मबल की अनुभूति के बल पर जीवन में आगे बढ़ेगा। सही कह रहे हैं दुनिया रुकती नहीं आगे ही बढ़ती रहती है। इतिहास की गाड़ी में रिवर्स गीयर नहीं होता लेकिन प्रतिगामी ताकतों के प्रभाव में यदा-कदा अस्थाई यू-टर्न ले लेती हैं, लेकिन अंततः आगे ही बढ़ती है और पाषाणयुग से साइबर युग तक पहुंचती है। जैसे कोई अंतिम ज्ञान नहीं होता वैसे ही इतिहास की गाड़ी का कोई अंतिम प़ड़ाव नहीं होता, वह अपने गतिविज्ञान के नियम विकसित करती निरंतर प्रक्रिया में चलती रहती है। सादर।
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