गिरने की उसकी चमत्कारी प्रतिभा
गिरने की उसकी चमत्कारी प्रतिभा का
कवि का महिमामंडन कुछ कम है
उसके लिए गहरी-से गहरी खाई की
गहराई भी बहुत कम है
कवि सोचता है गिरने की थकान में
गिर सकता है उसका निक्कर
लेकिन यह कवि का निरा भ्रम है
पहना था जब उसने
पपू (परम पूज्य )गुरुजी की कृपा से यह निक्कर
फेवीक्विक लगा लिया था उसने कमर पर
कम पड़ने लगेगी जब गिरावट की अतल गहराई
स्मरण कर पपू गुरु जी को
कसकर कमर पर निक्कर
खोदेगा और भी गहरी खाई
और गिरता ही जाएगा
अनादि-अनंत सनातन प्रक्रिया में
मुल्क के फिर विश्वगुरु बनने तक
गिरता ही जाएगा
खोदता जाएगा नई खाइयां
और गिरता जाएगा
गारंटी के पूरी होने की गारंटी के साथ
(ईमि: 26.04.2024, सुलेमापुर आज़मगढ़)
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