Tuesday, December 27, 2022

शिक्षा और ज्ञान 386 (राहुल सांकृत्यायन)

 एक मित्र ने राहुल सांकृत्यायन के बारे में पूछा कि इन्होंने क्या किया है? और यह कि उन्हें इनकी किसी किताब के बारे में नहीं मालुम। और यह कि विद्वान होने के लिए अच्छा इंसान होना जरूरी है क्या? उस पर -


अच्छा लेखक, अच्छा शिक्षक, अच्छा बाप ..... कुछ भी अच्छा होने की पूर्व शर्त है अच्छा इंसान होना, इन्होंने इतना लिखा है कि हम-आप जैसे अपने पूरे जीवनकाल में उतना पढ़ नहीं सकते। आपको अगर इनकी कोई किताब नहीं मालुम तो आपको अपनी पढ़ाई की गुणवत्ता पर पुनर्विचार करना चाहिए। गूगल सर्च कीजिए। वैसे एक किताब आपको जरूर पढ़ना चाहिए जिसमें 20 कहानियों को माध्यम से मानव विकास का पूरा इतिहास समझा दिया है -- 'वोल्गा से गंगा'। बाभन से इंसान बनने के लिए 'तुम्हारी क्षय' पढ़ लें तथा उत्तर वैदिक गणतंत्रों के बारे में जानने के लिए , 'सिंह सेनापति'। आजमगढ़ जिले में पैदा हुए राहुल जी का बचपन का नाम केदार पांडेय था। महा पंडित राहुल सांकृत्यायन को शत शत नमन।

Monday, December 26, 2022

शिक्षा और ज्ञान 385 (अस्मिता की राजनीति)

 अस्मिता की राजनीति धूर्तता ही है, चाहे वह धार्मिक अस्मिता की हो या जातीय अस्मिता की। जातिवाद भारतीय समाज का नासूर है, इसीलिए अंबेडकर उसका विनाश जरूरी समझते थे। लेकिन वे यह नहीं समझते थे कि क्रांति के बिना जाति का विनाश नहीं हो सकता और जाति के विनाश के बिना क्रांति नहीं। इसीलिए जातिवाद विरोधी आंदोलन और क्रांतिकारी अभियानों के मिलन की जरूरत है, जिसका नारा होगा जय भीम लाल सलाम।

Sunday, December 25, 2022

शिक्षा और ज्ञान 384 (मूल निवासी)

 अनादि काल से मनुष्य एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते बसते रहे हैं इस लिए मूलनिवासी और बाहरी का राग अलापना अनैतिहासिक, अप्राकृतिक और अमानवीय है। जो भी जिस भूभाग में पर रहता है वह वहां का निवासी है। धरती के उपहारों पर सभी का समान अधिकार है, स्वयं धरती पर किसी का नहीं। जो कहीं थोड़ा पहले पहुंच गया, वह अज्ञान ओर मिथ्या चेतना के चलते थोड़ा बाद में आने वालों को बाहरी मानते और बताते हैं। अमेरिकी महाद्वीपों में नगण्य संख्या में बचे वहां के आदिवासियों ( रेड इंडियन) के अलावा सारे ही लोग 1492 में कोलंबस की तथाकथित खोज के बाद के बासिंदे हैं, लेकिन थोड़ा पहले पहुंचे गोरे बाकियों को बाहरी मानते हैं । वहां के आदिवासियों के भी विभिन्न समूह कभी-न-कभी कहीं-न-कहीं से आए होंगे। धरती पर रहने वाला हर व्यक्ति धरती का एकसमाम निवासी है और भारत में रहने वाला हर व्यक्ति एकसमान भारतवासी है।

Monday, December 19, 2022

मार्क्सवाद 279 (समानता)

 समानता एक गुणात्मक अवधारणा है, माात्रात्मक इकाई नहीं. विभिन्नता असमानता नहीं है। लेकिन असमानता के पैरोकार शातिराना तरीके से विभिन्नता को असमानता के रूप में परिभाषित करते हैं और फिर गोलमटोल कुतर्क का इस्तेमाल करते हुए उसी परिभाषा से असमानता प्रमाणित करते हैं। अब जब मौका मिला है तो स्त्रियां हर क्षेत्र में पुरुषों से आगे निकल रही हैं, जो मर्दवादी मानसिकता वालों की तिलमिलाहट का कारण बन गयी है। हम पुरुषों को चाहिए कि स्व के स्वार्थबोध पर स्व के परमार्थबोध को तरजीह दें और स्त्रियों के समानता/स्वायत्तता के संघर्ष का सम्मान करें। जीववैज्ञानिक भिन्नता प्राकृतिक है और स्त्री-पुरुष भेदभाव मनुष्य निर्मित कृतिम। (Sex is natural, gender is socially constructed, artificial. )

समर्पण भाव

 भक्तिभाव की ही तरह समर्पणभाव भी

प्रकारांतर से दास मानसिकता की अभिव्यक्ति है

न पूजा करो न पूजा की वस्तु बनो
लड़ो जनतांत्रिक इंसानी समानता के लिए
स्त्री प्रज्ञा और दावेदारी के रथ की सारथी बनो
मर्दवाद के दुर्गद्वार पर निरंतर प्रहार करो
स्त्री अस्मिता में ढूंढ़े जो दोष
जलाकर उसे रचो नया शब्दकोश
दे जो समानता और स्वतंत्रता का संदेश
तोड़ दो सदियों पुरानी बेड़ियां
और कर्मकांडों के सोने के पिजड़े
स्वतंत्रत्रता, समानता औक सौहार्द के नारे बुलंद करो
और इस तरह, मानवमुक्ति का पथप्रशस्त करो।
(ईमि: 13.12.2022)

किताबों के बियाबान में होता है उनमें लिखी बातों से तवार्रुफ

 किताबों के बियाबान में होता है उनमें लिखी बातों से तवार्रुफ

लेकिन ज्ञान से तवार्रुफ होता है उन बातों पर सवाल करने से।

मार्क्सवाद 278 (विचारक)

 विवेक की प्रजाति विशिष्ट प्रवृत्ति के चलते हर मनुष्य में विचारक बनने की संभावना होती है लेकिन विचारक वही बन पाते हैं जो विरासत में मिले पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर, रटाया भजन गाना छोड़कर घटनाओं-परिघटनाओं; रीति-रिवाजों के विश्लेषण में विवेक का इस्तेमाल करते हैं।

मार्क्सवाद 277 (साम्यवाद)

 मार्क्सवाद दुनिया को समझने का विज्ञान है और उसे बदलने की विचारधारा जो श्रमजीवियों द्वारा परजीवियों के शासन को समाप्त कर एक वर्गविहीन और फलस्वरूप राज्यविहीन समाज स्थापित करना चाहती है। जैसे सामंतवाद का विकल्प पूंजीीवाद बना वैसे ही पूंजीवाद का विकल्प अंततः साम्यवाद वनेगा, जिसमें हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार काम (श्रम) करेगा और हर किसी को जरूरत के अनुसार फल मिलेगा। सामंतवाद से पूंजी वाद में संक्रमण एक वर्ग समाज से दूसरे वर्ग समाज में संक्रमण है जो कि पिछले 600 सालों से चल रहा है लेकिन अभी तक पूरा नहीं हुआ, भारत जैसे देशों में वर्णाश्रमी सामंतवाद (एसियाटिक मोड) के अवशेष अभी भी मौजूदसही नहीं हैं, बल्कि सामाजिक चेतना के जनवादीकरण के रास्ते की रुकावटें बने हुए हैं। यूरोप की तरह यहां कोई नवजागरण और प्रबोधन (एनलाइटेनमेंट) की तरह सामाजिक क्रांति नहीं हुई जिससे समाज का जन्म आधारित विभाजन समाप्त नहीं हुआ जिसे अब जयभीम - लालसलाम नारे के साथ आर्थिक क्रांति से जोड़ने की जरूरत है। पूंजीवाद से साम्यवाद का संक्रमण गुणात्मक रूप से भिन्न, एक वर्ग समाज से वर्गविहीन समाज में संक्रमण होगा इसलिए जटिल। यदि रूसी क्रांति को शुरुआती विंदु माना जाए तो यह प्रक्रिया मुश्किल से 100 साल पुरानी है और प्रतिक्रांतिकारी ताकतों के हमले झेल रहीी है। साम्यवाद भविष्य का समाज है, इसलिए मार्क्सवाद का मर्सिया पढ़ने वालों को अपने इतिहासबोध पर सवाल करना चाहिए। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का एक नियम है कि जिसका भी अस्तित्व है उसका अंत निश्चित है, पूंजीवाद इसका अपवाद नहीं है, न ही वर्णाश्रमवाद या मर्दवाद। निरंतर चल रहे क्रमिक मात्रात्मक परिवर्तन परिपक्व होकर क्रांतिकारी गुणात्मक परिवर्तन में तब्दील होंगे। आज बड़ा-से-बड़ा जातिवादी भी खुलकर नहीं कह सकता कि वह जातीय भेदभाव को मानता है, उसी तरह जैसे बड़ा-से-बड़ा मर्दवादी यह नहीं कह सकता कि वह बेटा-बेटी में फर्क करता है, एक बेटे के लिए 5 बेटियां भले पैदा कर ले। यह जाति उन्मूलन की विचारधारा और स्त्रीवाद की सैद्धांतिक जीत है, जिसकी व्यवहार में तब्दीली समय का मामला है। अन्याय के विरुद्ध हर संघर्ष जारी वर्ग संघर्ष का ही हिस्सा है।

जय भीम लाल सलाम।
इंकिलाब जिंदाबाद।

नवब्राह्मणवाद 36 (आरक्षण)

 जातिवाद को समाप्त करने हेतु जातिवादी भेदभाव की वंचना की आंशिक भरपाई के लिए संविधान निर्माताओं ने सामाजिक न्याय के प्रावधान बनाए। आरक्षण के प्रावधान आर्थिक नहीं सामाजिक न्याय के प्रावधान हैं। वैसे भी आर्थिक रूप से संपन्न मझली शूद्र जातियां आरक्षण के दायरे से बाहर हैं और अब तो सवर्णों के लिए भी आरक्षण के प्रावधान बन गए हैं। हम जातिविहीन समाज के पक्षधर हैं इसीलिए जातीय श्रेष्ठताबेध के विरोधी जिसकी आवश्यक परिहार्यता के तौर पर, स्व के स्वार्थबोध जातीय श्रेष्ठतावाद से ऊपर उठकर स्व के परमार्थबोध के तहत बाभन से इंसान बन गया। आप भी स्व के जातिवादी स्वार्थबोध से ऊपर उठकर ठाकुर से इंसान बन जाएं तो समझ पाएंगे कि सामाजिक न्याय के प्रवधान जातिविहान समाज का पथप्रशस्त करने के लिए बने हैं। कुछ असवर्ण जवाबी जातिवाद में उलझकर जातिवादी ताकतों के सहयोगी बन जाते हैं। जवाबी जातिवाद (नवब्राह्मणवाद) जातिवाद (ब्राह्मणवाद) जितना ही खतरनाक है।

सत्योत्तर युग का सत्य

 Kuldeep Kumar भाई की सुंदर कविता

·
तोड़ो मत जोड़ो पर मेरा तुकबंदी में कमेंट। कविता नीचे कमेंट बॉक्स में।

बहुत ही सुंदर कविता है यह
और मानवता की सेवा को समर्पित हैं इसकी भावनाएं
सच है मदांध सत्ता और जनशक्ति के टकराव में
टूटती है मदांध सत्ता
लेकिन सत्योत्तर युग (पोस्ट ट्रुथ एरा) में
सत्य का मतलब बदल गया है
जोड़ने का मतलब तोड़ना हो गया है
जनशक्ति नए अर्थ के जोड़ने वाले के साथ है
क्योंकि सत्योत्तर युग के पहले के गांधी और राम-कृष्ण के सत्य
असत्य बन गए हैं और जोड़ने वाले को
तोड़ने वाला समझा जा रहा है
इंतजार है नए उत्तर-सत्योत्तर युग का
जब सत्य का मतलब दुबारा बदलेगा
और जनशक्ति उस नए सत्य के साथ होगी।

(ईमि: 17.12.2022

Sunday, December 11, 2022

अनुपस्थित की उपस्थिति का शाश्वत एहसास

 अनुपस्थित की उपस्थिति का शाश्वत एहसास

देता है द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का आभास

1905 में औपनिवेशिक शासकों ने जब बांटा था बंगाल

 1905 में औपनिवेशिक शासकों ने जब बांटा था बंगाल

बुनियाद रख दी थी अपने शासन के अंत की शुरुआत की
आज के फिरकापरस्त शासक जब बांट रहे हैं हिंदुस्तान
बुनियाद रख रहे हैं फिरकापरस्ती या इंसानियत के अंत की?

Friday, December 9, 2022

सत्योत्तर युग में शब्दों के मायने बदल गए हैं

 सत्योत्तर युग में शब्दों के मायने बदल गए हैं

बेईमानी का मतलब हो गया है ईमानदारी
बड़ा कवि समय के साथ चलता है
पाने को सत्ता का समुचित प्रसाद
सत्य की नई परिभाषा लिखता है
जिसका मृदंगमीडिया पर भजन गाता है
धीरे धीरे सत्योत्तर युग का असत्य
नए भारत का नया सत्य बन जाता है
क्योंकि खाकर प्रसाद बड़ा कवि
ईमानदारी की नई परिभाषा को
जनगणमन की भावना बताता है
(ईमि:08.12.2022)

इतिहास की गाड़ी में नहीं होता रिवर्स गीयर

 इतिहास की गाड़ी में नहीं होता रिवर्स गीयर

वह आगे ही बढ़ता जाता है
देखते हुए पीछे तय की गयी दूरी
अतीत को जोड़ता है वर्तमान से
और बनाता है नियम भविष्य के गतिविज्ञान का
जब हम आदिमयुग की सादगी की बात करते हैं
तो नहीं चाहते वापसी आदिम युग में
जब नहीं हुआ था अन्वेषणआजीविका के उत्पादन के साधनों का
संकेतों और ध्वनियों की भाषा में बात करते थे हमारे पूर्वज
तथा वाह्य खतरों से आत्म रक्षा के लिए
मिलते थे आपस में यदा-कदा सहज प्रवृत्ति से
भाषा का अन्वेषण एक क्तिरांतिकारी था
मानव विकास के इतिहास के गतिविज्ञान का
उसी तरह जब हम बात करते हैं
पूंजीवादी व्यक्तिवाद के प्रचलन से
सामंती सामुदायिकता के विघटन का
नहीं चाहते वापसी सामंती व्यवस्था का
द्वंद्वात्मक बदलाव नियम है इतिहास के गतिविज्ञान का
और अस्तित्व है जिसका भी
अवश्यंभावी है अंत उसका
नहीं है इसका अपवाद पूंजीवादी व्यक्तिवाद
शुरू होगी जिसके बाद निर्माण की प्रक्रिया
एक समतामूलक नई जनतांत्रिक सामुदायिकता का
और समाज मानव-मक्ति का।
(ईमि: 08.12.2022)

शहर के बढ़ने की आवश्यक शर्त है गांव का वीरान होना

 शहर के बढ़ने की आवश्यक शर्त है गांव का वीरान होना

शहर के बढ़ने की आवश्यक शर्त है गांव का वीरान होना

धीरे धीरे शहर की चका-चौंध गांव की साजगी को लील लेती है

पढ़ी-दर-पीढी चली आई पारंपरिक आपसी सहयोग की सहकारिता

व्यापारिक उपभोक्तावाद के कभी न भरने वाले मड़ार में समा जाती है।
(ईमि: 08.12.2022)