रणवीर सेना के संस्थापक-मुखिया की हत्या की प्रतिक्रिया में वर्णाश्रमी-सामंती उन्माद के दौरान जितनी तोड़-फोड़, आगजनी हुई उसका दशमांश भी यदि किसी छात्र/मजदूर आंदोलन के दौरान हुआ होता तो लाठी गोली चल चुकी होती और दर्जनों आंदोलनकारी जेल में होते. इसका जवाब क़ानून व्यवस्था नहीं वर्ग संघर्ष है. दलित चेतना का जो की दरिया झूम के उट्ठा है तिनकों से न टाला जाएगा. रणवीर सेना और बथानी टोला जैसी पागलपन और बौखलाहटकी परिघटनाएं बुझती आग की लपटों सी हैं. किसने ब्रह्मेश्वर की ह्त्या की, यह महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि हत्यारे की ह्त्या समस्या का समाधान नहीं है. समस्या सोच-जन्य है इस लिए जरूरत सोच बदलने की है.
Saturday, June 2, 2012
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