उदय प्रकाश के स्व-निर्वासन पर
ईश मिश्र
जो कलम जैसा मुश्किल औजार चला सकता है
कलम को औजार से हथियार बना सकता है
उसके लिए हल-कुदाल चलाना या बन्दूक उठाना
है राहुल सांकृत्यायन या क्रिस्टोफ़र काड्वेल को याद करना
जंगल तो हमें जाना ही है अंततः
चुनाव का अधिकार हमारा ही है वस्तुतः
होती है ईर्ष्या आपके स्वनिर्वासन से
चाकरी वालों यह सुख नसीब हो कैसे
हैं आप तो शब्द-शिल्पी और कारीगर भाषा के
बन कुम्हार, गीली मिट्टी से गढ़ देते हैं भाव कविता के
हाथ चला रहे होते हैं जब कुदाल
आते हैं मन में कई ख्याल
दिखते हैं जब श्रम के फल होते अंकुरित
लगता है शीघ्र ही होंगे ये पूर्ण विकसित
दिखती हैं पौधों में जब कलियाँ
बनेंगीं ये जल्दी ही फलियाँ
मुबारक हो खेती कहानी-कविताओं की
उपन्यासों और आलोचनाओं की
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