Wednesday, August 3, 2011

बनारस में स्वागत

फेसबुक पर ग्वालियर निवासी जन-कवि अशोक पाण्डेय ने अपनी एक पोस्ट में पूर्वी उत्तर प्रदेश के भ्रमण की सूचना दी और चूंकि संत चौमासे में भ्रमण मुल्तवी कर विश्राम करते हैं इसलिए उन्होंने अपने को दुष्ट घोषित कर दिया. निहितार्थ यह की वे दुष्ट हैं तो दुर्जन भी होंगे. उसी क्षेत्र का मूल-निवासी होने के नाते उन्हें सावधान रहने की सलाह दे डाला.मानना न मानना उनका काम है.
बनारस में स्वागत
ईश मिश्र
हे दुष्टशिरोमनि दुर्जन कवि महाराज
आइये अपने दुष्ट-दुस्साहस से बाज
जा रहे हैं आप जहां आज
है वहां दुष्ट-मर्दिनी का राज
होते अगर साधु-संत तो कुछ और बात होती
हाथी-सवार रानी फूलों की वर्षा करती
दुष्टों के है वह सख्त खिलाफ
कभी नहीं करती उनको माफ़
लेकिन ख़त्म हो जाए गर सागर के ज़र्फ़ का डर
पार कर जायेंगे उफनता-उमड़ता समंदर
स्वागत है बनारस में है जो भीड़-भरा, गंदा, सुन्दर शहर
आस्था का तीर्थ है उठती है लेकिन विद्रोह की भी लहर
कबीर ने यहीं ललकारा था सारे मुल्लों-पंडों-बादशाहों को
ढोंग, पाखण्ड और लूट के आकाओं को
जगाया था खाकनशीनों-ज़ुल्म के मातों को
दबे-कुचले; लुटे-ठगे लोगों को
कामगरों-किसानों को
मुखर कर दिया था तेली-तमोली-जुलाहों के टोलों को
झुठलाया था अंधविश्वास और पाखंड की बातों को
किया था तुलसी ने भी विद्रोह संस्कृत के खिलाफ
कबीर का विद्रोह था उंच-नीच की संस्कृति के खिलाफ
है अगर आपकी कबीराना अकड़
हो चाहे मुठभेड़ या फिर धर पकड़
स्वागत है आपका घाटों के इस शहर में
अलग-अलग सुदरता जिसकी अलग-अलग पहर में.

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