Friday, August 19, 2011

टुकड़ों में वजूद

टुकड़ों में वजूद
ईश मिश्र
किसी ने कहा
इंसान के वजूद के कई तुकडे होते हैं
एक भले इंसान का एक स्वार्थी टुकड़ा
स्वर्ण-लोम से दोस्ती करता है
उसकी पीठ पर सवार हो समुद्र पार करता है
पहुंचते ही उस पार
घोंप कर पीठ में छुरी
मार देता है उसे धोखे से
उसकी खाल बेचने के लिए

इंसान का वजूद नहीं होता टुकड़ों में
होता है वह हमेशा मुकम्मल
सुवर्ण लोम को फंसा कर
उसपर सवार हो समुद्र पार कर
फिर उसे मार कर
उसकी खाल बेचने वाला कमीना स्वार्थ
उसके कमीने वजूद का ही शाया है
उसका कभी कभी अलग दिखना
कमीना न लग कर भला लगना
सिर्फ छलावा और माया है
१९.०८.२०११

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