Sunday, January 12, 2025

शिक्षा और ज्ञान 361 (असहमति)

 रोमिला थापर की पुस्तक असहमति की आवाजें के संदर्भ में असहमति की ऐतिहासिक आवाजों पर Tribhuvan जी की एक पोस्ट पर एक कमेंट का जवाबः


बाकी नृशंषताओं की आड़ में अपनी नृशंसताएं छिपाना आपराधिक सोच है। मानवतावादी पश्चिम के नस्ल, वर्ग और मर्दवाद की नृशंसताओं का वैसे ही विरोध करते रहे हैं जैसे जाति-धर्म-मर्दवाद की यहां की क्रूर अमानवीय नृशंसताओं का। यहां अमानवीय क्रूरताओं को धार्मिक जामा पहनाकर दैवीय बना दिया गया है, जिससे बाभन से इंसान बनना ज्यादा कठिन हो गया है। आपकी यह बात, 'विचार - संप्रदाय,नस्ल और स्त्रीसम्मान को लेकर कुछ दशकों पहले तक पश्चिम में जो नृंशस विधान थे उन पर सामान्यत: दृष्टि नहीं जाती जब कि इधर धर्मशास्त्रों के अप्रमाणित और विरोधाभासी बयानों को लेकर कई जातियों को पंचिंग बैग बना दिया गया।' उसी आपराधिक सोच की परिणति लगती है कि मैं ही नहीं वह भी चोर है। अरे भाई उसकी भी चोरी का विरोध करिए लेकिन वह विरोध तभी सार्थक होगा जब पहले हम अपनी चोरी का विरोध करें। जहां तक कई जातियों को पंचिंग बैग बनाने का सवाल है तो विरोध जन्म के आधार पर व्यक्तित्व का निर्धारकरने वाली विचारधारा ब्राह्मणवाद का होता है, जन्मना ब्राह्मण व्यक्ति का नहीं। बाभन से इंसान बनना, जन्म की जीववैज्ञानिक संयोग की अस्मिता से ऊपर उठकर विवेकशील इंसान की अस्मिता अख्तियार करने का मुहावरा है।

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