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स्वतंत्रता के ही नहीं किसी भी हक के एक एक इंच के लिए लड़ना पड़ता है, खैरात में केवल भीख ही मिलती है। जब मजदूर वर्ग वर्गचेतना लैस होकर संगठित होकर खुद को 'अपने आप नें वर्ग' से 'अपने लिए वर्ग' में तब्दील करेगा तो खुद की स्वतंता की लड़ाई खुद लड़ेगा और सर्वहारा की मुक्ति में ही मानव मुक्ति निहित है। सर्वहारा अपनी मुक्ति यानि मानव मुक्ति की लड़ाई लड़ेगा ही और जीतेगा भी। इसके लिए कोई टाइमटेबुल नहीं तय किया जा सकता। हजारों सालों की गुलामी तोड़ने में बहुत समय और ऊर्जा लगती है। सवाल पूछा जाता है कि मजदूर या सर्वहारा कौन है? जवाब है कि शारीरिक या बौद्धिक श्रमशक्ति बेचकर आजीविका कमाने वाला हर व्यक्ति मजदूर है। ज्यादा मजदूरी वाले सुविधासंपन्न मजदूर खुद के शासक वर्ग का होने का मुगालता पालते हैं और पूंजी/साम्राज्यवादी पूंजी के प्यादे का किरदार निभाते हैं। इस कोटि के मजदूरों को जाने-माने मार्क्सवादी चिंतक, ऐंड्रे गुंतर फ्रैंक लंपट बुर्जुआ कहा है। यह नामकरण मार्क्स द्वारा शासक वर्गों के दलाल मजदूरों के लंपट सर्वहारा नामकरण की तर्ज पर है।
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