गणतंत्रदिवस की एक पोस्ट पर कमेंट:
76वें गणतंत्र दिवस की बधाई। भारत की आजादी की लड़ाई कांग्रेस के नेतृत्व में लड़ी गयी, इस बात को नकारना इतिहास को नकारना है। इस लड़ाई में, एचआरए--एचएसआरए के परचम तले क्रांतिकारियों की बलिदानी भूमिका प्रकारांतर से लड़ाई को बल प्रदान करने वाली रही है। हिंदू महासभा और आरएसएस ही नहीं, मुस्लिम लीग और जमाते इस्लामी भी उपनिवेशविरोधी आंदोलन के विरुद्ध औपनिवेशिक शासन के साथ थे । दरअसल भारत में सांप्रदायिकता औपनिवेशिक रचना है। बहादुर शाह जफर के प्रतीकात्मक नेतृत्व में, विद्रोही सैनिकों के सहयोग से 1857 की किसानों की सशस्त्र क्रांति ने औपनिवेशिक शासन की चूलें हिला दी थीं और औपनिवेशिक शासक और भारतीयों की ऐसी एकताबद्ध सशस्त्र क्रांति की पुनरावत्ति की आशंका से आतंकित थे और सुरक्षा कवच के रूप में औपनिवेशिक प्रशासक एओ ह्यूम की अगुवाई में अंग्रेजी पढ़े-लिखे भारतीयों के संगठन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन करवाया जो कालांतर में उपनिवेश विरोधी आंदोलन का प्रभावी मंच बन गई। कई बार अनचाहे उपपरिणाम लक्षित परिणाम को धता बताते हुए स्वतंत्र लक्ष्य बन जाते हैं। औपनिवेशिक शासकों की मनसा से स्वतंत्र कांग्रेस उपनिवेशविरोधी स्वतंभत्रता आंदोलन का प्रमुख मंच बन गयी। कांग्रेस के नेतृत्व में उपनिवेश विरोधी आंदोलन की विचारधारा के रूप में भारतीय राष्टवाद का विकास शुरू हुआ। इस ऐतिहासिक परिघटना ने औपनिवेशिक शासकों की नींद हराम कर दी। इसे तोड़ने के लिए उन्होंने बांटो-राज करो की नीति को तहत धार्मिक भिन्नता को हवा देते हुए धार्मिक राष्ट्रवाद की परिकल्पना की। भारत के दोनों प्रमुख समुदायों से उसे सहयोगी मिल गए जिन्होंने औपनिवेशिक प्रश्रय में भारतीय राष्ट्रवाद के विरुद्ध क्रमशः हिंदू राष्ट्र्रवाद और मुस्लिम राष्ट्रवाद के परचम फहराया और अंततः भारतीय राष्ट्र और भारतीय राष्ट्रवाद को खंडित करने में सफल रहे। 1947 में खंडित स्वतंता मिली और विखंडन के घाव नासूर बन अभी तक टपकसरहे हैं। भारत का मौजूदा सांप्रदायिक फासीवाद उसी नासूर की रिसन है। कम्युनिस्टों के स्वतंत्रता आंदोलन के विरुद्ध अंग्रेजों का साथ देने की बात मिथ और दुष्प्रचार है। द्वितीय. विश्वयुद्ध में फासीवादी मोर्चे के विरोधी मोर्चे का साथ देना कम्युनिस्ट पार्टी की रणनीतिक भूल थी जिसे बाद में पार्टी ने स्वीकार किया। वैसे भी फासीवादी साम्राज्यवाद और संवैधानिक (औपनिवेशिक) साम्राज्यवाद में चुनाव का फैसला मुश्किल फैसला था। कम्युनिस्ट पार्टी एकमात्र पार्टी थी जिस पर पूरी पार्टी पर दो मुकदमे हुए और सारे कम्युनिस्ट जेल में डाल दिए गए थे। आज संकट फिर से सांप्रदायिक फासीवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रवाद की सुरक्षा है। आप सबको 76वां गणतंत्र दिवस मुबारक हो।
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