बाभन से इंसान बनना जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना के आधार पर समाज द्वारा लादी गयी अस्मिता से ऊपर उठकर स्वतंत्र विवेकसम्मत अस्मिता अख्तियार करने का मुहावरा है। पैदा तो सब समान-स्वतंत्र इंसान ही होते हैं लेकिन पैदाहोते ही समाज उन पर बाभन-अहिर; हिंदू-मुसलमान.... के ठप्पे लगा देता है, यह मुहावरा उस ठप्पे की बेड़ियों से मुक्ति का मुहावरा है। रूसो की कालजयी कृति 'सोसल कॉन्ट्रैक्ट' का पहला वाक्य है कि मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है लेकिन बेड़ियों में जकड़ दिया जाता है। उसके सामाजिक अनुबंध का मकसद एक ऐसे समाज की रचना है जिसमें मनुष्य पहले जैसा स्वतंत्र हो सके।
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