मार्क्सवाद को धर्म बताना एक दुराग्रह है। मार्क्स कोई भविष्यवाणी नहीं करते, तथ्य-तर्कों के आधार पर 'अर्थ ही मूल है' की धुरी पर इतिहास की समीक्षा करते हैं और बताते हैं कि जब की कोई उत्पादन संबंद्ध इतिहास को आगे ढ़ाने की बजाय उसकी गति पर बेड़ियां बन जाते हैं तो क्रांतिकारी युग परिवर्तन होता है, जैसा कि आदिम, दास, सामंती युगों के साथ हुआ। जब पूंजीवादी उत्पादन पद्धति की आगे की संावनाएं खत्म हो जाएंगी तो अगला युग परिवर्तन होगा जिसके संभावित नायक के रूप में मार्क्स ने सर्वहारा का अन्वेषण किया।द्वंद्वात्मक भौतिकवाद और प्रकृति का नियम है कि जिसका भी अस्तित्व है उसका अंत निश्चित है और पूंजीवाद भी अपवाद नहीं हो सकता। मनुष्य अज्ञानवश दीर्घकालीन यथास्थिति को शाश्वत मान लेता है जबकि परिवर्तन के सिवा कुछ भी शाश्वत नहीं होता।
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