ऐसे कुछ लोग हैं जो बुढ़ापे में मां-बाप का ख्याल नहीं रखते या उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं। लेकिन सौभाग्य से ऐसे लोगों का अनुपात अधिक नहीं है। मेरी जानकारी में, अब भी मां-बाप की समुचित देखभाल करने वाली औलादों का ही बहुमत है। गांव से शहर आने वाीली पहली-दूसरी पीढ़ी के लोगों के मां-बाप को कई बार अपने परिवेश से कटकर शहर में बच्चों के पास रहना पड़ता है जो कि अपने आप में कष्टप्रद है। देखने में आता है कि मां-बाप के साथ दुर्व्यवहार करने वालों के बच्चे भी उनके बुढ़ापे में उनके साथ भी वैसा ही करते हैं। बच्चे तो बड़ों से ही सीखते हैं। मेरी दादी भी साथ रहती थीं, उनकी सबसे ज्यादा दोस्ती मेरी छोटी बेटी से थी। जो किस्से सुनते मेरा बचपन बीता था वही सुनते उसका भी। मैं बेटियों सो कहता था कि लोग अपनी दादी के साथ नहीं रह पाते और तुम लोग कितने भाग्यशाली हो कि अपने बाप की दादी के साथ रह रही हो। मां-बाप की अनदेखी करने वाले या उनसे दुर्व्यवहार करने वाले अभागे होते हैं। मेैरी पत्नी बच्चों की एक बात आज भी उद्धृत करती रहती हैं। दोनों बेटियाीं क्रमशः 5 और 10 साल की थीं। एक बार दोनों अपनी मां से एक साथ बोल पड़ीं, " मम्मी आप अइया ( मेरी दादी) और माई (उनकी दादी) के साथ जैसा करेंगी वैसा ही हम लोग भी आपके साथ करकेंगे।" मां-बाप की देखभाल कर पाना सौभाग्य की बात है।
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