कैंपस में अंतिम मॉर्निंग वॉक से लौटा हूं, कल हरे-भरे परिवेश के कैंपस के इस घर में अंतिम दिन था, रात गेस्ट हाउस में सोया क्योंकि सामान कल ही पैक हो गया था। सोचा था कियह घर छोड़ने के पहले यहां रहने के अनुभवों पर एक लंबा लेख लिखूंगा, लेकिन सोची हर बात हो ही जाए तो क्या बात! दर-असल यथास्थिति को स्थाईभाव से जीना मनुष्य की प्रवृत्ति है, और अच्छी प्रवृत्ति है, आज आनंद से जिओ, कल की कल देखी जाएगी।
लोग दूर-दूर से कारों से विवि कैंपस की हरियाली और बगल के रिज में सुबह सुबह घूमने आते हैं लेकिन मैं पिछले लगभग 14 साल से यहां रहते हुए जीवन-चर्या के दौरान जो घूमना हो जाता था बस वही, या शाम को कभी एक पड़ोसी सहकर्मी से गप्पे करते हुए। दिसंबर, 2018 में दिल के दौरे के बाद अस्पताल से लौटकर मेडिकल परामर्श के चलते रोज सुबह डेढ़-दो किमी घूमने लगा और लगा यह पहले से ही करना था। अब कल से कैंपस की हरियाली की बजाय नोएडा के कांक्रीट जंगलों में सुबह की सैर होगी।वैसे तो 2020 जून में 65 का होऊंगा लेकिन प्राइमरी जल्दी पास कर लेने से हाई स्कूल परीक्षा की न्यूनतम उम्रसीमा के लिए सर्टीफिकेट में दर्ज उम्र से फरवरी में ही 65 होकर रिटायर हो गया। अब तक की आधी उम्र कैंपसों में बीती 5 साल जौनपुर में स्कूल (इंटर कॉलेज) के तथा प्राइवेट हॉस्टल मिलाकर जौनपुर में; 4 साल इलाहाबाद विवि में वैध-अवैध 10 साल जेएनयू में छात्र के रूप में और लगभग 14 साल दिवि कैंपस में। कैंपस में रहने का सुख अनुभव तो किया जा सकता है उन अनुभवों को सटीक ढंग से शब्दों में नहीं उतारा जा सकता। 1989 में दिवि की एक साल की अस्थाई नौकरी के लिए इग्नू की नौकरी छोड़ने की मूर्खता न करता तो कैंपस में रहने का अनुभव लगभग 15 साल बढ़ जाता। वह सुविचारित फैसला था इसलिए अफशोस नहीं है, लेकिन फैसला गलत था, जिस गलती का खामियाजा 5 साल की अतिरिक्त बेरोजगारी से चुकाया। मैं जानता नहीं था कि क्रांतिकारी प्रोफेसर भी अपने 'बड़े आदमियों के प्रतिभाशाली बेटे' चेलों की गॉडफादरी की कमीनगी में प्रतिक्रियावादी गॉडफादरों को भी मात दे देगा।
कैंपस के इस घर के अनुभवों के बारे में अब यह घर आज ही छोड़ने के बाद ही लिख पाऊंगा। प्रशासनिक दक्षता के आत्मविश्वास की कल्पित कमी न होती तो 7-8 साल और कैंपस में रहता। 1999 में और फिर 2003 में हॉस्टल का वार्डन बनने के अवसरों को इसलिए टाल गया। 2006 में जब वार्डन बना तो मैंने अपने अंदर एक अद्भुत प्रशासक का अन्वेषण किया। वार्डन के रूप में एक अलग ही तरीके से पढ़ाने का अनुभव हुआ। दर-असल शैक्षणिक संस्थाएं, जेएनयू की तरह पूर्णतः आवासीय होनी चाहिए।ज्ञानार्जन की दृष्टि से कैंपस की दिन की जिंदगी जितनी ही महत्वपूर्ण रात की भी जिंदगी होती है। जेएनयू की जनतांत्रिक शैक्षणिक संस्कृति में रात्रि-भोजन के उपरांत की जिंदगी का उल्लेखनीय योगदान है। जेएनयू छोड़ने के बाद बहुत दिनों तक भोजनोपरांत कार्यक्रमों के लिए मयूरविहार से बाइक से जाता रहा।
इस घर में यानि कैंपस में रहने के अनुभवों के बारे में अब यहां से शिफ्ट होने के बाद विस्तार से लिखूंगा, जिसमें सबसे खूबसूरत दिन थे 3 साल हॉस्टल के वार्डन के रूप में, बच्चेभी उन दिनों को बहुत प्यार से याद करते हैं।