इरान में स्त्रियां हिजाब के विरुद्ध प्रदर्शन कर रही हैं और हिंदुस्तान की कुछ स्त्रियां हिजाब पर पाबंदी के विरुद्ध। हर किसी को खाने-पहनने की रुचि की आजादी का अधिकार होना चाहिए, चाहे वह हिजाब पहने या हॉट पैंट। महान स्त्रीवादी दार्शनिक सिमन द बुआ से एक बार एक पत्रकार ने पूछा कि जब स्त्रियां अपने पारंपरिक जीवन (पितृसत्तात्मक समाज की रीतियों में रहते हुए) से खुश हैं तो वे उनपर अपने विचार क्यों थोपना चाहती हैं? उन्होंने जवाब दिया था कि वे किसी पर कुछ भी थोपना नहीं चाहतीं बल्कि वे उन्हें जीवन के और रास्तों से परिचित करना चाहती हैं, क्योंकि वे पारंपरिक रीति-रिवाजों के जीवन में इसलिए खुश हैं कि वे जीवन के और रीति-रिवाजों के बारे में नहीं जानती। इरान और हिंदुस्तान की लड़कियां/स्त्रियां सभी तरह के पहनावे से वाकिफ हैं, इरान की लड़कियों का हिजाब न पहनने के अधिकार की लड़ाई उतनी ही वाजिब है, जितनी हिंदुस्तान की कुछ लड़कियों का हिजाब पहनने के अधिकार की। दुनिया के हर स्त्री-पुरुष को पहनावे के चुनाव की आजादी होनी चाहिए।
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