मैंने नागरिकता अधिनियम के विरोध में अमेरिका के शिकागो में आयोजित प्रोटेस्ट में अपनी बेटी के शिरकत की तस्वीर शेयर किया उस पर एक सज्जन ने कहा कि मैं इसलिए विरोध कर रहा हूं कि इसे खास पार्टी लागू कर रही है, एक और ने कहा कि वामपंथी सीधे-सादे आदिवासियों को बरगलाकर जल-जंगल की लड़ाई में झोंक देते हैं और अपने बच्चों को पूंजीवादी देश अमेरिका भेज देते हैं, उनपर कुछ कमेंटः
जी नहीं, हम इसलिए विरोध करते हैं कि यह संविधान के मूल चरित्र के विरुद्ध है। इस पर एक छोटा लेख मैंने इस ग्रुप में शेयर किया है। इसलिए भी विरोध करते हैं कि इसका मकसद गरीबी, बेरोजगारी, देश की सार्वजनिक संपत्ति की बिक्री से ध्यान हटाकर हिंदू-मुसलमान के बाइनरी के नरेटिव को जारी रखते हुए, धर्मपरायण जनता को उल्लू बनाकर चुनावी ध्रुवीकरण से अपना उल्लू सीधा करना है।
आप की अकल पर कुछ कमेंट करूंगा तो बुरा मान जाएंगे, किन सीधे-सादे लोगों को बरगलाने की बात कर रहे हैं? जिन्हें आपसीधे-सादे बरगलाने के पात्र समझ रहे हैं वे आप और मेरे जैसों से बहुत समझदार हैं, बरगलाने की कोशिस कीजिएगा तो कान काट लेंगे। कहां से सीधे-सादे बरगलने वाले लोगों की कल्पना लेकर आते हैं? आदिवासियों के किसी आंदोलन में जाइए 20-25 साल के लड़के-लड़कियों को सुनकर दंग रह जाएंगे तथा खुद के डिग्री होल्डर होने पर शर्म आएगी। पूंजी का कोई देश नहीं होता और मजदूर का भी देश नहीं होता, मेरी बेटी मेरी ही तरह एक स्वतंत्र इंसान है, मेरी ही तरह जहां भी खरीददार मिले श्रम बेचने को अभिशप्त, बाकी जहां भी रहे वहीं अन्याय के विरुद्ध लड़ने न लड़ने को स्वतंत्र। वैसे घटिया निजी आक्षेप ओछेपन की निशानी है। मैंने उसे प्रोटेस्ट में शामिल होने के लिए नहीं कहा, न ही मेरे कहने से वह शामिल होगी, न मना करने से मानेगी। बाकी मैं पड़ोसी के घर नहीं अपने ही घर भगत सिंह के पैदा होने की कामना करता हूं।
समाजवाद भविष्य की व्यवस्था है। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद है क्या जिसे फेल होते आपने देखा है? यदि द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की समझ होती तो यह सवाल न करते कि मैं पूंजीवादी व्यवस्था के विवि में नौकरी क्यों करता था? समाजवाद में नौकरी (श्रम बेचने) की जरूरत नहीं होगी सब अपनी सर्जक क्षमता भर काम करेंगे और सबकी जरूरतें पूरी करना समाज का दायित्व होगा। सादर।
असहमति का सम्मान करता हूं लेकिन आप सहमति नहीं दिखा रहे हैं कुतर्क कर रहे हैं तथा निराधार निजी आक्षेप। बेटी की सत्ता की दलाली करती तस्वीर नहीं शेयर कर रहा हूं, प्रोटेस्ट की तस्वीर शेयर कर रहा हूं, मेरे बारे में या वाम पंथ के बारे में कुछ जाने बिना कुतर्कपूर्ण आक्षेप या फतवेबाजी को पूवाग्रह एवं कुंठा का ही परिचायक है। मेरी न तो सत्ता में पहुंच है न इतना धन है कि बेटी को अमेरिका भेज सकूं, मेरी बेटियां इतनी आजाद-खयाल हैं कि मेरे भेजने से न कहीं जाएंगी न मना करने से न जाएंगी। उसने फिल्म-पत्रकारिता का कोर्स किया और देश-विदेश में आगे की पढ़ाई और रोजी के स्कोप खोजते अमेरिका पहुंच गयी, वहां कोई प्रोटेस्ट हो रहा था उसमें वह शरीक हुई। उसने मुझे कार्यक्रम की तस्वीर भेजा मैंने एक फक्रमंद बाप की तरह शेयर कर दिया। आप उस पर अपने कमेंट देखिए और खुद अपने पूर्वाग्रहों तथा कुंठा पर सोचिए। आपकी प्रोफाइल देखा और एक शिक्षक होने के नाते दूसरे शिक्षक का ऐसा व्यवहार देख तकलीफ हुई जो मैंने आपसे शेयर किया। यथार्थ देखर किताबों से अधिक असली ज्ञान होता है लेकिन उस पर चिंतन यदि विवेकपूर्ण हो, पूर्वाग्रहऔर कुंठाजनित न हो। किताबों से अन्य लोगों के विचार भी जानने को लमिलते हैं जो हमारे अपने चिंतन को समृद्ध करते हैं, इसलिए किताबें पढ़ना भी जरूरी है। शिक्षक को तो लगातार पढ़ते रहना चाहिए। सादर, किसी को छोटा दिखाना मेरा कभी मकसद नहीं होता।
23,12.2019
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