Thursday, December 23, 2021

बेतरतीब 119(मिशाल से शिक्षा)

 Kanupriyaहा हा. मेरी बेटियां तो बहुत बड़ी बड़ी होगयी हैं. छोटी जब छोटी(4-5) थी तो मुझसे तथा अपनी बड़ी बहन पर बहादुरी दिखाती थी, सोसाइटी में अपनी ही उम्र के किसी लड़के से पिट कर आई तो अपनी मम्मी को बताया कि वह लड़का अपनी मां-बाप का नालायक पैदा हुआ है. मैंने थोड़ा मजाक किया तो मुझे पीट दी. बच्चे बहुत सूक्ष्म पर्यवेक्षक तथा नकलची होते हैं. नैसर्गिक प्रवृत्ति महज आत्मसंरक्षण होती है, हम अपना बचपन याद करें या अपने बच्चों का सूक्ष्म अध्ययन करें तो पायंगे बच्चे डांट से बचने के लिेए सच लगने वाले बहाने बनाते हैं. बच्चे अच्छे-बुरे नहीं होते अच्छाई बुराई वे परिवार, परिवेश तथा समाज से सीखते हैं. बच्चे रूसो के प्राकृतिक मनुष्य की तरह निरीह, मासूम जीव होते है। व्यक्तित्व का विकास समाजीकरण से होता है। इसी लिए मां-बाप तथा शिक्षक को मिशाल से पढ़ाना होता है प्रवचन से नहीं.(A teacher has to teach by example and parents have to bring up children by example) 2-3 साल की उम्र से बच्चों की समझदारी बढ़ती है, साथ ही बढ़ती है आज़दी की चाह तथा बढ़ता है मां बाप का आज़ादी पर अलोकतांत्रिक नियंत्रण. इस नियंत्रण में विवेकशीलता की जरूरत है. ज्यादातर मां-बाप अपने मां-बाप के सम्मान में अपने बच्चों से वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसा उनके मां-बाप ने उनके साथ किया था, अपनी असुरक्षा तथा दुर्गुण बच्चों में प्रतिस्थापित कर देते हैं, अपनी अपूर्ण इच्छाएं भी. एक कॉलेज के एक शिक्षक अपने बाप की घूसखोरी के लिए जेल यात्रा की कहानी ऐसे बताते हैं जैसे कि वे स्वतंत्रता सेनानी हों. 1991-92 की बात होगी मैं एक साल की कॉलेज की नौकरी के बाद फिर से फ्री-लांसर (बेराजगार) था. यचआईजी फ्लैट में रहता था(यलआईजी फ्लैट ढूंढ़ते ढूंढते थककर य़चआईजी ले लिया, वैसे1100 से सीधे 2000 का जंप बहुत था) छोटी प्रेप में थी बड़ी 4 में. हमारे पास फ्रिज नहीं था. बेटियों को आइसक्रीम खिलाने ले गया था. वापसी में मैंने ऐसे ही तफरीह में पूछा मेहनत मजदूरी की कमाई से ऐसे रहना ठीक है कि चोरी-बेईमानी से ऐशो आराम से. दोनों ने कहा नहीं वे ऐसे ही खुश हैं. छोटी को लगा कि रोज आइसक्रीम खाना शो-आराम है. बहन से बोली, दीदी हम घड़े में आइसक्रीम जमा लेंगे. खैर उसी हफ्ते एक डॉक्यूमेंटरी की स्क्रिप्ट का 10000 का पेमेंट आ गया तथा इमा का ऐशोआराम.एक बार कुछ कर रहा था किसी का फोन आया मन में आया बेटी से कह दूं कि बोल दे घर पर नहीं हूं लेकिन तुरंत सोचा कि कल झूठ बोलने से रोकूंगा तो सोचेगी कि अपने काम से झूठ बोलवाते हो और अपने आप झूठ बोलूं तो आफत. तुम भाग्यशाली हो जो इतनी छोटी बेटियों के साथ बढ़ रही हो, इतने छोटे बच्चों के साथ बहुत मजा आता है बस उनको उनके बारे में अपनी चिंताओं, ओवरकेयरिंग, ओवरप्रोटेक्सन, ओवरयक्सपेक्टेसन से प्रताड़ित मत करना. हा हा. इतनी सलाह मुफ्त में और के लिए फीस इज निगोसिएबल. मेरा प्यार देना.


24.12. 2015

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