आज गांव-गांव लाइब्रेरी आंदोलन की जरूरत है दिनेश यादव उन्मुक्त और Laxman Yadav सराहनीय प्रयास कर रहे हैं। किताबों पर एकाधिकार के चलते विचारधारा के रूप में ब्राह्मणवाद का वर्चस्व कायम रहा। एकाधिकार खत्म होते ही, नई चुनौतियों से जूझने की बजाय हिंदुत्व की खोल ओढ़ लिया। खोल दरकने लगी तो राष्ट्रवाद बन गया। राममंदिर अब धार्मिक नहीं राष्ट्रवादी अभियान बन गया है। यानि, राष्ट्रवाद ब्राह्मणवाद का पर्याय बन गया है। इस धोख को उखाड़ने के लिए जाति का विनाश अनिवार्य है। 'हिंदू' जातियों का पिरामिडाकार समुच्चय है। जब जाति नहीं रहेगी, हिंदू शब्द निरर्थक हो जाएगा, विचारधारा के रूप में हिंदुत्व (ब्राह्मणवाद) स्वतः विलुप्त हो जाएगा। ये जेयनयू की लाइब्रेरी का बजट 80% फीसदी काट दे या उप्र की शिक्षा बजट 90%। लोग किताबों के महत्व से परिचित हो गए हैं, पढ़ ही लेंगे, अब तो बहुत सी ऑनलाइन उपलब्नध हैं। नहीं तो कबीर बन जाएंगे।
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