Sunday, February 5, 2012

लोकतंत्र

यह लोकतंत्र थैलीशाहों की चेरी है
वर्दियों से वह चहुँ ओर से घिरी है
वर्दियां बनती तो हमारी खून पसीने की कमाई से
करती हैं ज़ुल्म हम पर पूरी बेहयाई से
अदालतें भी ऐसे जैसे उन्ही की लुगाई हों
सोनी सोरी पर ज़ुल्म जैसे उनकी ही दुहाई हो
अंकित गर्ग की दरिन्दगी को बहादुरी का इनाम
इस लोकतंत्र का है यही असली अंजाम
जितने भी हरामखोर हैं दुनिया जवार में
पद्म-विभूषित होते अगली कतार में

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