इन आँखों से छलकने को है तकलीफ का इक समंदर
लेकिन जज्बा-ए- इन्किलाब भी है उसके अन्दर
चहरे के भाव में संकल्प छिपे हैं ऐसे
दुनिया बदलने निकल पडी है कोई ज्वाला जैसे
इश्क़ करने को कहता है दिल कर पार उम्र की दहलीज
मिल जाए गर ज़िंदगी में कोई ऐसा अज़ीज़
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