जावेद अख्तर तथा मुफ्ती शमैल नदवी के बीच आस्तिकता-नास्तिकता पर बहस की एक पोस्ट पर एक सज्जन ने कमेंट किया
"आस्तिक, नास्तिकों से कहीं अधिक ख़तरनाक हैं क्योंकि वे धार्मिक कम धर्मांध ज्यादा हैं।"
उस पर :
मतलब कि नास्तिक भी खतरनाक होता है, अपेक्षाकृत कम? एक धार्मिक समाज में नास्तिकता अनवरत चिंतन-मनन, अदम्य साहस और दुरूह आत्मसंघर्ष का परिणाम होती है। नास्तिक की तार्किकता सत्य का प्रमाण मांगती है, दैवीयता का प्रमाण नहीं मिलता इसलिए उसे वह नकारती है। भगवान की भय से मुक्ति के लिए धैर्य और संयम की आवश्यकता होती है तथा दैवीयता की बैशाखी तोड़कर फेंकने के लिए आत्मबल की। नास्तिक किसके लिए क्या खतरा पैदा करता है? मेरे परिजनों में 99.99% धार्मिक हैं, धर्मांध नहीं, लेकिन धार्मिकता में धर्मांधता की संभावनाएं मौजूद रहती हैं।
Rehan Ashraf Warsi वाद-विवाद तर्क आधारित होनी चाहिए तथा आस्था में तर्क का कोई स्थान नहीं होता, किसी दैवीय शक्ति का नकार उस पर दृढ़ आस्था रखने वालों को उसका मजाक लगेगा इसमें तर्क का कोई दोष नहीं है। सत्य वही जिसका प्रमाण हो। नास्तिक जब किसी सर्वशक्तिमान की अवधारणा को खारिज करता है तो वह किसी मशीहा या अवतार की बात क्यों मानेगा? धार्मिकों को तर्क करने का धैर्य अर्जित करना चाहिए।

No comments:
Post a Comment