Monday, December 22, 2025

बेतरतीब 182 (जेएनयू 1983)

जगदीश्वर चतुर्वेदी की एक पोस्ट पर कमेंट:

1983 के छात्र आंदोलन कुचले जाने में एसएफआई प्रकांरांतर से प्रशासन के साथ थी और यूनिवर्सिटी अनिश्चितकाल के लिए बंद होने के बाद तो एसएफआई-एसएफआई-फ्रीथिंकर्स सबने समझौता कर लिया था। मुख्यधारा संगठनों से अलग कुछ छात्र, लगभग 20 रस्टीकेट हुए, ज्यादातर ने माफी मांग ली। अध्यक्ष नलिनी रंजन मोहंती का रस्टीकेसन बाद में वापस हो गया। वैसे उनका तो तहना है कि वीसी ने उनके व्यवहार से खुश होकर उनका रस्टीकेसन वापस लिया था, उन्होंने माफी नहीं मांगी थी जो विश्वसनीय नहीं लगता। एसएफआई के जगपाल सिंह का भी रस्टीकेसन वापस हो गया था। इतने छात्रों के रस्टीकेसन के खिलाफ मुख्यधारा के किसी संगठन ने कोई आवाज नहीं उठाई, आंदोलन की तो बात ही छोड़िए। ज्यादातर लोग 2 साल के लिए रस्टीकेट हुए थे, 4 लोग 3 साल के लिए -- अधियक्ष के नाते मोहंती, बाद में जिनका रस्टीकेसन निरस्त हो गया, उर्मिलेश, मैं और सयुस काअटल शर्मा। बाकी लोगो में इग्नू से रिटायर, इतिहासकार प्रो. शशि भूषण उपाध्याय, दलित बुद्धिजीवी चंद्रभान प्रसाद, बीजी तिलक, वैज्ञानिक सुगठन तथा विलुप्त हो चुके कवि राजेश राहुल शामिल थे। अध्यक्ष के निष्कासित होने के बाद नर्वाचित ज्वाइंट सेक्रेटरी रश्मि दोरईस्वामी का कार्यकारी अध्यक्ष बनना आंदोलन विरोधी कृत्य था। वैसे आपका अध्यक्ष बनना और समय पर पीएचडी जमा करना प्रशंसनीय है। यह कमेंट टाल सकता था, लेकिन नहीं टाला।

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