Thursday, December 18, 2025

शिक्षा और ज्ञान 384 (हिजाब)

 नीतीश कुमार द्वारा, जबरन एक स्त्री डॉक्टर का हिजाब उतारने की आलोचना की एक पोस्ट पर एक सज्जन ने लिखा कि हिजाब पहनना उसका अधिकार नहीं बल्कुि माइंड वाशिंग या मेंटल कंडीशनिंग है। उस पर --


बिल्कुल सही कह रहे हैं, यह वैसी ही माइंड वाशिंग है, जैसे करवा चौथ या नवरात्र का व्रत रखना या खुशी-खुशी कन्यादान के अनुष्ठान से दान की वस्तु बन जाना या हिंदू अथवा मुस्लिम होने पर गर्व करना। लेकिन यह पोलिटिकल नहीं कल्चरल कंडीशनिंग है इसका निदान जोर जबरदस्ती करवा चौथ पर पाबंदी लगाना नहीं सांस्कृतिक चेतना बदलना है जिससे स्त्रियां करवाचौथ का व्रत रखने का मर्दवादी निहितार्थ समझ सकें और खुद उसका परित्याग कर सकें। ज्यादातर मुस्लिम छात्राएं हिजाब नहीं पहनतीं। इरान में हिजाब के विरुद्ध जबरदस्त आंदोलन चला। मैंने उस समय हिजाब के विरुद्ध इरानी स्त्रियों के आंदोलन का समर्थन किया था और साथ ही हिंदुस्तान के कुछ संस्थानों में हिजाब पर पाबंदी के विकुद्ध स्त्रियों के आंदोलन का भी। हर किसी को अपना भोजन-वस्त्र चुनने की आजादी होनी चाहिए। आजादी की समझ पर भी सामाजिक चेतना का दबाव होता है तो निदान आजादी पर प्रतिबंध नहीं, सामाजिक चेतना का जनवादीकरण है।

जिस पोस्ट पर जिस कमेंट के जवाब में यह कमेंट लिखा गया, उन सज्जन ने मेरे कमेंट के जवाब में पूछा--

Abhinav Bhatt
Ish Mishra लेकिन उस समाज का क्या करे जो अपनी कोई कुरीति छोड़ना ही नहीं चाहता, और हर पागल पन को ऊपर वाले का आदेश बताता है, आपने किसी पढ़े लिखे मुसलमान को सुना, कहते बुर्का प्रथा कुरीति है, और तो और मजे की बात ये है कि वो एक डॉक्टर थी जो बुर्का पहन कर नियुक्ति पत्र लेने आई, फिर ऐसे में आप किस से अपेक्षा करेंगे मानसिक विकास की?

मेरा जवाब:

Abhinav Bhatt जी बहुत से मुसलमान यह कहते हैं कि बुर्का इस्लामी नहीं ऐतिहासिक प्रचलन है। घूंघट और बुर्का सारे मर्दवादी प्रतीक हैं। बहुत सी अल्ट्रा मॉडर्न लड़कियां भी करवा चौथ रखती हैं। वह डॉ. हिजाब पहने थी, और आपको किसी के खाने-पहने के चुनाव की आदत का सम्मान करना चाहिए। आपने कितने सनातन का भजन गाने वालों को यह कहते सुना है कि करवा चौथ या पति के नाम पर मंगल सूत्र पहनना या कन्यादान जैसी मर्दवादी अवधारणाएं कुरीतियां हैं? सारे धर्मांध अपने धर्मों की कुरीतियों के औचित्य के कुतर्क गढ़ते रहते हैं। इरान में हिजाब के विरुद्ध स्ियों के जुझारू आंदोलन को इरान तथा दुनिया के अन्य बहुत से देशों के पुरुषों का समर्थन प्राप्त है। मैंने विवाह में अपनी पत्नी की शकल ही नहीं देखी थी। हिंदू विवाहों लड़किया 3 फुट लंबा घूंघट निकाले रहती थीं। धीरे-धीरे सभी समुदायों में बदलाव आ रहे हैं।

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