सावरकर की ही तरह जिन्ना भी धार्मिक नहीं था, सांप्रदायिक था। मैं इलाहाबाद के अपने शुरुआती दिनों में नास्तिक होने के बावजूद एबीवीपी में था। कोई पूछता है तो कहता हूं, मैं धार्मिक नहीं था, सांप्रदायिक था। सांप्रदायिकता धार्मिक नहीं, धर्मोंमादी लामबंदी की राजनैतिक विचारधारा है। जिन्ना और सावरकर जैसे चतुर-चालाक लोग लोगों की धार्मिक भावनाओं को उद्गारित कर उन्हें उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। धार्मिक लोग धर्मोंमाद में आसानी से उल्लू बन जाते हैं।
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