Sunday, March 10, 2024

शिक्षा और ज्ञान 349 (बहुजन विमर्श)

 एक मित्र ने प्रकारांतर से सामाजिक न्याय की अवधारणा को अनैतिहासिक तथा मानवता विरोधी बताया, उस पर कमेंट:


बहुजन हिताय; बहुजन सुखाय की अवधारणा का प्रतिपादन प्राचीन काल में बुद्ध ने किया था। ऐतिहासिक रूप से हर युग में कामगर ही बहुजन रहा है। वर्णाश्रम व्यवस्था में शूद्र कामगर यानि बहुजन रहे हैं । वर्णाश्रम व्यवस्था के विचारकों ने कामगर वर्ग यानि शूद्र (बहुजन) समुदाय को श्रेणीबद्ध जातियों में बांट दिया जिसमें सबसे नीचे वाले को छोड़कर सबको अपने से नीचे देखने को कोई-न-कोई मिल जाता है। इसी ढर्रे परपूंजीवाद ने बहुजन यानि कामगर वर्ग (भौतिक या बौद्धिक श्रम शक्ति बेचकर रोजी कमाने वाला) को श्रेणीबद्ध आर्थिक कोटियों में बांट दिया जिसमें सबसे नीचे वाले को छोड़कर सबको अपने से नीचे देखने को कोई-न-कोई मिल जाता है। इस मामले में मार्क्सवाद बहुजन हिताय का दर्शन है। प्राचीन यूनान में प्लेटो ने सामाजिक न्याय का सिद्धांत प्रतिपादित किया लेकिन उसका सामाजिक न्याय बहुजन हिताय न होकर अभिजन हिताय है। आधुनिक काल में अमेरिका, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में अफर्मेटिव ऐक्सन की अवधारणा प्रकारांतर से सामाजिक न्याय की ही अवधारणा है।

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