लोक तंत्र बन गया है धनपशुओं के अंधभक्तों का संख्यातंत्र
लोक तंत्र बन गया है धनपशुओं के अंधभक्तों का संख्यातंत्र
जनता की खून-पसीने की कमाई से बन रहा भव्य राजमहलदेख नेहरू की जनतांत्रिक विरासत का होता विध्वंश
फासीवादी मंसूबों की फितरत से लोक की आवाज गई है दहल
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