Wednesday, May 3, 2023
मार्क्सवाद 286 (लंपट सर्वहारा)
प्रेमचंद ने सही कहा है कि लेखक भी मजदूर होता है, इसलिए नहीं कि वह विचार पैदा करता है, बल्कि इसलिए कि वह प्रकाशक के लिए सरप्लस पैदा करता है। श्रम-शक्ति बेचकर आजीविका कमाने वाला हर कोई मजदूर होता है, आप लोगों जैसे व्हाइट कॉलर मजदूर पूंजीपति होने का मुगालता भले पालें। कितने मजदूर डेढ़ लाख पाते हैं? डेढ़ लाख वाले मालिक की दलाली करते हैं, संघर्ष नहीं, पत्रकारों जैसे अभिजात मजदूरों को भी इतनी पगार नहीं मिलती, 30-35 हजार भी नहीं पाते फिर भी ईमानदारी से काम करने की बजाय रोजी छिनने के डर से मालिकों की जी-हुजूरी करने को मजबूर होते हैं बेचारे। 1980 के दशक में जब पत्रकारों की यूनियनें ताकतवर थी मालिक को किसी पत्रकार को आंख दिखाने को पहले 10 बार सोचना पड़ता था। धनपशुओं को चारण हमेशा से ही मजदूरों की बुराई करने में लगे रहते हैं। मालिकों के चारण की भूमिका निभाने वाले मजदूरों को लंपट सर्वहारा कहा गया है। मैं हॉस्टल का वार्डन था कर्मचारियों को नियमित करने की हिमायत कर रहा था तो प्रिंसिपल ने कहा, आपके यहां (हॉस्टल में) कौन काम करता है? मैंने कहा "आप ही कहती हैं कि हॉस्टल बहुत अच्छा चल रहा है और वार्डन तो साइन करने के अलावा कुछ करता नहीं तो कर्मचारियों के ही काम से हॉस्टल अच्छा चल रहा होगा"। मालिकों की जीहुजूरी में मजदूरों पर कीचड़ उठाने वाले मजदूर आत्मघाती लंपट सर्वहारा की श्रेणी में आते हैं। आत्मघात से बचिए।
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