Sunday, May 28, 2023

नारी विमर्श 26 (मर्दवाद)

 मर्दवाद (पुरुषवाद) एक सांस्कृतिक विचारधारा है जिसके जरिए सांस्कृतिक वर्चस्व निर्मित होता है। सिमन द बुआ ने लिखा है कि स्त्री पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। मर्दवाद कोई जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं है, न ही गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की तरह कोई साश्वत विचार। मर्दवाद विचार नहीं विचारधारा है जिसे हम रोजमर्रा के क्रिया-कलापों तथा विमर्श के जरिए निर्मित-पुनर्निर्मित एवं पोषित करते हैं। विचारधारा मिथ्या चेतना होती है जो उत्पीड़क (perpetrator) को ही नहीं, पीड़ित (victim) को भी समान रूप से प्रभावित करती है। जैसे हम किसी लड़की को शाबाशी देने के लिए 'वाह बेटा' कह देते हैं और वह भी इसे शाबाशी समझकर कर खुश हो जाती है। किसी लड़के को बेटी कहकर शाबाशी दें तो सब हंस देंगे। मेरी बेटियों को कोई बेटा कह देता है तो वे बुरा मान जाती हैं। आर्थिक परिवर्तनों के साथ राजनैतिक और कानूनी परिवर्तन तुरंत हो जाते हैं क्योंकि आर्थिक परिवर्तनों को बरकरार रखने के लिए वे जरूरी होते हैं। लेकिन सांस्कृतिक परिवर्तन तुरंत साथ-साथ नहीं होते क्योंकि सांस्कृतिक मूल्यों को हम पलने-बढ़ने (समाजीकरण) के दौरान अंतिम सत्य की तरह आत्मसात कर लेते हैं, जिन्हें छोड़ने (unlearn करने) के लिए हमें निरंतर प्रयास करना पड़ता है। मैं अपनी पहली ही क्लास में दो बातें हर साल दोहराता था। 1. Key to any knowledge is questioning; questioning anything and every thing, beginning with our own mindset, as knowledge does not come from what you are taught but by questioning that. फिर थोड़ा हास्यभाव से जोड़ता था, But the process of unceasing questioning involves the risk of turning into atheist. 2. Unlearning is as important, if not more, part of education as learning. During our socialization we acquire so many values independent of our conscious will, We must question them (acquired values); unlearn them, if need be and replace them with rational ones. तो आत्मसात किए सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़ना या अनलर्न करना एक निरंतर सजग प्रक्रिया है। ग्राम्सी इसे सांस्कृतिक वर्चस्व के रूप में परिभाषित करते हैं।

Saturday, May 27, 2023

सुकरात के प्याले में जहर नकली रहा होगा वरना वह आज भी जिंदा कैसे होता?

 सुकरात के प्याले में जहर नकली रहा होगा वरना वह आज भी जिंदा कैसे होता?

 सुकरात के प्याले में जहर नकली रहा होगा वरना वह आज भी जिंदा कैसे होता?
जहर का प्याला पिलाकर
एथेंस के एनीटस ने ढाई हजार साल पहले की थी कोशिस सुकरात को मारने की
लेकिन सुकरात आज भी जिंदा है सच के लिए लड़ने की प्रेरणा बनकर
तीन मूर्ति भवन के नेहरू स्मारक को नष्ट करके
आज का शहंशाह मारना चाह रहा है नेहरू को उनके निधन के 60 साल बाद
उसी तरह जैसे औपनिवेसिक सासकों ने मारना चाहा था
भगत सिंह को फांसी पर लटकाकर बानबे साल पहले
लेकिन भगत सिंह आज भी जिंदा हैं दुनिया में क्रांति की प्रेरणा बनकर
नेहरू भी मरेंगे नहीं आज के एनीटस की सभी कोशिशों के बावजूद
जिंदा रहेंगे आज के और आने वाले हर वर्तमान में
सिद्दत से बनाई मुल्क की अपनी जनतांत्रिक विरासत में
भले ही ध्वस्त हो जाए तीनमूर्ति भवन का उनका स्मारक

(ईमि 26.05.2023)

शिक्षा और ज्ञान 304

 तीन मूर्ति भवन में नेहरू स्मारक के साथ छेड़-छाड़ देखकर लगा सुकरात के प्याले में जहर जररूर नकली रहा होगा वरना ढाई हजार साल बाद भी वह कैसे जिंदा रहता? कुछ लोग व्यक्ति से विचार बन जाते हैं और विचार मरते नहीं,फैलते हैं और इतिहास रचते हैं।

लोक तंत्र बन गया है धनपशुओं के अंधभक्तों का संख्यातंत्र

 लोक तंत्र बन गया है धनपशुओं के अंधभक्तों का संख्यातंत्र

 लोक तंत्र बन गया है धनपशुओं के अंधभक्तों का संख्यातंत्र
जनता की खून-पसीने की कमाई से बन रहा भव्य राजमहल
देख नेहरू की जनतांत्रिक विरासत का होता विध्वंश
फासीवादी मंसूबों की फितरत से लोक की आवाज गई है दहल

Wednesday, May 24, 2023

मार्क्सवाद 287 (पुलिस)

 मार्क्स ने 170 पहले लिखा था कि राज्य पूंजीपतियों के सामान्य हितों के प्रबंधन की कमेटी है नवउदारवाद में राज्य निजी पूंजीपतियों की रखैल नौकरानी बन गई है तथा मुल्क को लूटने और प्रदूषित करने का विरोध करने वालों की हत्या करवाती है तथा जेलों में बंद करती है चाहे मामला कुख्यात विदेशी कंपनी वेदांता द्वारा प्रदूषण के विरोधियों का हो या कलिंगनगर में टाटा द्वारा आदिवासियों की जमीन हड़पने के विरोधियों का। ये सरकारें किसी खास पूंजीपति की रखैल न होकर सबकी रखैल हैं। इसीलिए सरकारें जनता की खून-पसीने की कमाई से वर्दीधारी भाड़े के हत्यारों का गिरोह पालती है। 2 जनवरी 2006 को कलिंगनगर में शांतिपूर्ण विसेथापन विरोधी प्रदर्शन में जलियांवाला बाग की तर्ज पर 16 प्रदर्शनकारियों की हत्या कर दी तथा दर्जनों को जेल में डाल दिया था और आंदोलन के सभी नेताओं पर दर्जनों मुकदमों में फंसा दिया था। तमिलनाडु की हत्याओं का सिलसिला ताजा है। तमिलनाडु सरकार भाड़े के हत्यारों से 12 हत्याएं करवा चुकी है कई की अस्पतालों और जेलों में हालत गंभीर बनी हुई है। जिनको भी पकड़ा सबके हाथ-पांव तोड़ दिया। वर्दी पहना कर इन हत्यारों को अमानवीय क्रूरता का प्रशिक्षण दिया जाता है चाहे वह पुलिस हो चाहे सेना। वर्दी इन्हें भाड़े के अपराधियों के खूंखार गिरोह में तब्दील कर देती है। गिरोह में तब्दील कर देती है। वेदांता की रखैल तमिलनाडु की सरकार इसमें नक्सल ऐंगल खोज रही है। कब जनता जागेगी और धनपशुओं की रखैल पार्टियों और नेताओं को खाक में मिलाएगी। जागेगी जरूर। शाहिर ने कहा है जुल्म बढ़ता है तो मिट जाता है।

24.05.2018

Saturday, May 13, 2023

शिक्षा और ज्ञान 403 (टीपू सुल्तान)

 टीपू सुल्तान पोस्ट पर एक मित्र मोपला पर भजन गाने लगे मैंने एकाध लिंक शेयर किया तो कहा कि जनचौक जैसे फर्जी लिंक न शेयर करूं, उस परः


ऊपर शेयर किए गए लिंक जनचौक के नहीं हैं, जनचौक एक प्रतिष्ठित प्रामाणिक प्रकाशन है। आप जरूर फर्जी कम्यूूनल लिंक शेयर करते हैं जो राजाओं की लडाई को या जमींदारों के विरुद्ध किसानों और खेत मजदूरों के विद्रोह को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए हिंदू-मुस्लिम नरेटिव बनाकर नफरत फैलाते हैं। जिन्होंने इतिहास पढ़ा है, वे जानते हैं कि हल्दीघाटी की लड़ाई मे राणाप्रताप की सेना के विरुद्ध अकबर के सेनापति राजा मानसिंह थे, जिनकी सेना में रणाप्रताप के भाई जगमाल और शक्ति सिंह शामिल थे। राणाप्रताप की तोप ब्रगेड का कमांडर हकीम खां सूर अफगान था। जो हजारों अफगानों के साथ राणा प्रताप के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर लड़ा और शहीद हुआ। शिवाजी के विरुद्ध युद्ध में औरंगजेब का सेनापत् राज जय सिंह था और शिवाजी का तोपची इब्राहिम खां था और नवसेनाध्यक्ष दरयासारंग । राणाप्रताप के अपवाद को छोड़कर सारे राजपत रजवाड़े अकबर के दरबारी थे और बिना किसी अपवाद के सभी औरंगजेब के। औरंगजेब के ज्यादातर अधिकारी और जागीरदार राजपूत और मराठे थे। इतिहास को इतिहास की तरह पढ़े , सांप्रदायिक राजनीति की तरह नहीं.

Friday, May 5, 2023

नारी विमर्श 25 (मर्दानी)

 स्त्रियों की बहादुरी को मर्दानगी कहना मर्दवादी मानसिकता की अभिव्यक्ति है। मर्दवाद जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं विचार धारा है जिसे हम रोजमर्रा के जीवन और विमर्श में निर्मित-पुनर्निर्मित और पुष्ट करते हैं। विचारधारा न सिर्फ उत्पीड़क को प्रभावित करती है बल्कि पीड़ित को भी। लड़की को जब हम बेटा की साबाशी देते हैं तो वह भी उसे साबाशी ही के ही रूप में लेती है। ऐसा करके हम दोनों ही अनजाने में बेटी होने की तुलना में बेटा होने की श्रेष्ठता बताकर कर अनचाहे ही मर्दवाद की विचारधारा को पुष्ट करते हैं। मेरी बेटियां बेटा कहने पर कहती हैं, Excuse me I don't take it as complement. कई साल पहले मेरी बड़ी बेटी अपनी पहली तनख्वाह में से अपनी मां को 1000 पॉकेटमनी कहकर दिया। सरोज जी ने भावुकतामें कह दिया कि मेहा तो मेरा बेटा है, उसने पैसा वापस लेते हुए बोला कि जाओ बेटे से लो। उनके सॉरी बोलने पर लौटा दिया। मैं कभी किसी लड़की को बेटा कहकर साबाशी नहीं देता।

04.05,2021

Wednesday, May 3, 2023

मार्क्सवाद 286 (लंपट सर्वहारा)

प्रेमचंद ने सही कहा है कि लेखक भी मजदूर होता है, इसलिए नहीं कि वह विचार पैदा करता है, बल्कि इसलिए कि वह प्रकाशक के लिए सरप्लस पैदा करता है। श्रम-शक्ति बेचकर आजीविका कमाने वाला हर कोई मजदूर होता है, आप लोगों जैसे व्हाइट कॉलर मजदूर पूंजीपति होने का मुगालता भले पालें। कितने मजदूर डेढ़ लाख पाते हैं? डेढ़ लाख वाले मालिक की दलाली करते हैं, संघर्ष नहीं, पत्रकारों जैसे अभिजात मजदूरों को भी इतनी पगार नहीं मिलती, 30-35 हजार भी नहीं पाते फिर भी ईमानदारी से काम करने की बजाय रोजी छिनने के डर से मालिकों की जी-हुजूरी करने को मजबूर होते हैं बेचारे। 1980 के दशक में जब पत्रकारों की यूनियनें ताकतवर थी मालिक को किसी पत्रकार को आंख दिखाने को पहले 10 बार सोचना पड़ता था। धनपशुओं को चारण हमेशा से ही मजदूरों की बुराई करने में लगे रहते हैं। मालिकों के चारण की भूमिका निभाने वाले मजदूरों को लंपट सर्वहारा कहा गया है। मैं हॉस्टल का वार्डन था कर्मचारियों को नियमित करने की हिमायत कर रहा था तो प्रिंसिपल ने कहा, आपके यहां (हॉस्टल में) कौन काम करता है? मैंने कहा "आप ही कहती हैं कि हॉस्टल बहुत अच्छा चल रहा है और वार्डन तो साइन करने के अलावा कुछ करता नहीं तो कर्मचारियों के ही काम से हॉस्टल अच्छा चल रहा होगा"। मालिकों की जीहुजूरी में मजदूरों पर कीचड़ उठाने वाले मजदूर आत्मघाती लंपट सर्वहारा की श्रेणी में आते हैं। आत्मघात से बचिए।

मार्क्सवाद 285 (मार्क्स)

 सामाजिक आंदोलनों की मेरी एक पोस्ट पर एक सज्जन (अंधभक्त) पर बेबात मार्क्स के नाम का दौरा पड़ा और कहे कि वे ऐसा काम करते थे कि जर्मनी से भागकर दूसरे देश में जाना पड़ा। फिर बोले कि  उतना बड़ा और कोई नहीं हुआ? उस परः


सही कह रहे हैं, उनके (मार्क्स) बाद अभी तक तो कोई और हुआ नहीं। सत्ता का भय होता है विचारों का आतंक। 23-24 साल के एक निहत्थे लड़के के विचारों का इतना आतंक हुअआ कि जर्मनी के शासकों को देश में उसकी उपस्थिति अपनी सत्ता के लिए खतरनाक लगने लगी। पड़ोस के देश फ्रांस में भी उसके कलम की गूंज से उनके देश के शासकों को दौरा पड़ने लगा और जर्मन शासकों के दबाव में फ्रांस के शासकों को भी उन्हें देश निकाला देना पड़ा। बेल्जियम में रहते हुए उन्होंने कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो लिखा और राष्ट्रीय नागरिकता त्याग कर अंतरराष्ट्रीय नागरिक बन गए। उनके कलम से निकले शब्द बेल्जियम के शासकों भी नहीं रास आए और अपनी सत्ता के लिए खतरा लगने लगे तथा वहां से भी उन्हें जाना पड़ा और 1848 में जीवन भर के लंदन आ गए। भारत पर लिखने के लिए उन्होंने औपनिवेशिक (अंग्रेजी) शासन से यहां आने की अनुमति मांगी लेकिन भारत के औपनिवेशिक शासकों को उनका यहां आना अपनी सत्ता के लिए खतरनाक लगा और उन्हें अनुमति नहीं दिया। लंदन स्थित इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी तथा अन्य स्रोतों से सामग्री जुटाकर भारत पर कालजयी लेखन किया। भारतीय पद्धति की व्याख्या के लिए एसियाटिक मोड ऑफ प्रोडक्सन की प्रस्थापना गढ़ा। 1857 की क्रांति को जब सभी सभी गदर कह रहे थे तब मार्क्स नें इंडियाज वार ऑफ इंडेपेंडेंस शीर्षक से न्यू यॉर्क ट्रिब्यून में डिस्पैचेज लिख रहे थे। शासक वर्गों और उनके चारणों के लिए उनके विचारों का इतना आतंक बना हुआ है कि उनकी मौत के लगभग डेढ़ सौ साल बाद भी धनपशुओं के आप जैसे चारणों पर उनके नाम का दौरा पड़ता रहता है।

जैसे आप जैसे फासीवादी अंधभक्तों पर आज भी उनके नाम का दौरा पड़ता रहता है तो उनकी भौतिक उपस्थिति के साथ उनके विचारों के आतंक का अंदाज लगाइए। सत्ता का भय होता है विचारों का आतंक। भगत सिंह के विचारों से आतंकित औपनिवेशिक शासकों को सारी राज्य मशीनरी का बल लगाकर उनकी हत्या करनी पड़ी। लेकिन आप जैसे बंद दिमाग फासीवादी अंधभक्तों को क्रांतिकारियों की बातें कैसे समझ आएंगी? रटा भजन गाइए और मस्त रहिए। मेरा समय नष्ट करना बंद कर दीजिए