यह जंगे आजादी तलवार से नहीं
कलम से लड़ी जाएगी
तोड़ेगा ही जालिम बगावती कलम
उसकी शहादत से
आवाज और निखर जाएगी
यह जंगे आजादी तलवार से नहीं
कलम से लड़ी जाएगी
कलम की आवाज
जनमन में समा जाएगी
जुल्म के तोप-टैंकों में भी
जमीर उगाएगी
उनकी दिशा खुद बदल जाएगी
यह जंगे आजादी तलवार से नहीं
कलम से लड़ी जाएगी
कलम की आवाज
जब कमाल दिखाएगी
निहत्थों को निडर बनाएगी
और जैसा गोरख पांडे ने लिखा है
बंद कर देंगे डरना तब निहत्थे लोग
चप्पे-चप्पे से गूंजेगा
इंक्लाब जिंदाबाद
जालिमों की जमात डर जाएगी
ढह जाएगा जुल्म का किला
यह जंगे आजादी तलवार से नहीं
कलम से लड़ी जाएगी
(यों ही बहुत दिनों बाद कलम आवारा हो गया)
(ईमि: 28.06.2018)
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