दर-असल पीयचडी और तलाश- ए-माश के दौर में बेचारा, शिक्षक (यह बेचारा अवमानना के अर्थ में नहीं, सहानुभूति के अर्थ में है) इतनीबार झुकता है कि नतमस्तकता उसका स्वभाव बन जाता है तथा सर उठाकर चलने की दबी चाहत कभी विस्फोट करती है तो हिंसक होती है। मुझसे अगर कोई कहता है कि देर से नौकरी मिली, मैं ईमानदारी से जवाब देता हूं, सवाल उल्टा है, मिल कैसे गयी? नसमस्तक समाज में सिर उठाकर जीने की कोई भी कीमत कम होती है। देश में शिक्षा की स्थिति दयनीय है, ऊपर से सरकार उसे बिल्कुल नष्ट करने पर उतारू है।
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