Friday, January 8, 2016

डा.संदीप पांडे के काहिवि से निष्कासन पर

डा.संदीप पांडे के काहिवि से निष्कासन पर

करना  इंकार ध्वज प्रणाम करने से
नहीं सहेगा हिंदू विश्वविद्यालय का निज़ाम 
प्रोफेसर का है केवल कोर्स पढ़ाना
अटूट आस्था के वृक्ष लगाना
नमस्ते सदा वत्सले के गीत सिखाना
पढ़ाना ही है कोर्स के बाहर की ग़र कोई बात
तो बताय़े पूर्वजों की गौरवशाली उपलब्धियां 
 वेद-पुराणों के दैविक ज्ञान-विज्ञान
गणेश की शल्य-चिकित्सा 
तथा रावण का पुष्पक विमान   
दें नवनिहालों को मुसलमानों की क्रूरता का ज्ञान  
लिया नहीं जिनने शूरवीर पूर्वजों की 
सहनशीलता का संज्ञान 
वे जंग-ए-शमशीर फतह करते रहे
हमारे शूरवीर बहादुरी से हारते रहे
पढ़ाना ही है कोर्स के बाहर की बाते 
ग़र किसी प्रोफेसर को
पढ़ाये वह सब बढ़ाये जो राष्ट्रवादी असर को
राष्ट्रद्रोही है प्रोफेसर संदीप पांडे जैसे लोग
फैलाते जो विद्यार्थियों में तर्कशीलता का रोग
आस्था की बातों पर करते ये संदेह
भक्ति भाव को बताते ये बुद्धिजीवी भदेश
विवेक को कहते आस्था से श्रेष्ठ
विज्ञान को बताते वेद से भी श्रेष्ठ
विद्रोह को बताते विकास की बुनियाद
है जो राष्ट्रद्रोह की असली पहचान 
बनाना है इनको कॉरपोरेटी मशीन
बनाते हैं ये इंसान चिंतनशील
पैदा होता इससे राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा
जारी रहता इनका ग़र सेकुलरी मिसरा 
कर नहीं सकता बर्दास्त हिंदू विश्वविद्यालय का निजाम
देता हो जो चिंतनशीलता से कुकर्म को अंजाम 
नहीं है निज़ाम को संदीप पांडे से निजी अदावत
संदेश है उन सबको देते हैं जो नशीहत-ए बगावत
जानता नहीं इतिहास का नियम किरदार-ए-ध्वजप्रणाम 
धूल में मिल जाते हैं सारे हिटलर, हलाकू, चंगेज खान
कलम तोड़ने का इनका एक-एक काम
देता है आवाज़ को बुलंदी का अंजाम
(आज ही तय किया था, कुछ दिन कविता न लिखने का, संदीप पांडे के काहिवि से निष्कासन पर गद्य में एक वक्तव्य देना चाहता था कलम का पद्य में वक्तब्य का मन हो गया)
(ईमिः 08.01.2015) 

2 comments:

  1. बहुसंख्यक झूठ से मुँह फेर अल्पसंख्यक सच पर भरोसा करेगा
    ऐसा मानुष कलियुग में इसी तरह एक नहीं रोज एक मौत मरेगा

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  2. उसकी अांखों पर छाई है रतौंधी अज्ञान की
    मान लेता है फरेब को माया भगवान की

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