Monday, January 18, 2016

सलाम साथी रोहित वेमुला

सलाम साथी रोहित वेमुला
रंग लाएगी तुम्हारी शहादत जरूर एक-न-दिन
शुरू नकर दें द्रोणाचार्य अब गिनने अपने दिन
लेकिन नाराज हूं साथी तुमसे
शहादत की नहीं संघर्ष की दरकार है
तोड़ने के लिए मनुस्मृति से लैस
नवउदारवादी द्रोणाचार्यों के मठ
व्याप्त है अब भी जहां
जन्मना ज्ञान का मनुवादी हठ
ध्वस्त करने के लिए विद्वता के दुर्ग
पैदा करते हैं जो दोपाया शुतुर्मुर्गबहुत
फैलाते हैं जो ऐसा कुज्ञान
बन न सके जिससे कोई बाभन से इंसान

सचमुच बहुत नाराज हूं साथी तुमसे
शहादत की नहीं संघर्ष जरूरत है
भले ही नामवर सिंह बहादुरी का कृत्य लगती हो आत्म-हत्या*
समझ सकता हूं मनुवादी हमले के अपमान की असह्य पीड़ा
लेकिन द्रोणचार्य का हाथ कलम करने की जगह
तुमने एक बार फिर अपना ही अंगूठा काट कर दे दिया उसे
मरने की नहीं लड़ने की जरूरत है
क्योंकि कृपा से कुछ नहीं मिलता
लड़ना पड़ता है हक़ के एक-एक-इंच के लिए
तुम्हारे पास संघर्षों की लंबी विरासत है
विरसा से लेकर बाबा साहब तक
भगत सिंह से चेग्वेरा तक
हो सकता है मेरी नाराज़गी वाजिब न हो
क्योंकि यह दिमाग नहीं दिल की बात है
लेकिन व्यर्थ नहीं जायेगी साथी तुम्हारी शहादत
द्रोणाचार्य के ताबूत की आखिरी कील बनेगी
सुनो एकलव्यों जब भी अंगूठा मांगने आये द्रोणाचार्य
उसका हाथ कलम कर दो
सलाम साथी रोहित बामुला
रंग लाएगी तुम्हारी शहादत जरूर एक-न-दिन
(ईमिः 18.01. 2016)

No comments:

Post a Comment