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युवा हमेशा अनुभवी नेतृत्व से मार्गदर्शन की अपेक्षा रखते हैं. जयप्रकाश नारायण का स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारी योगदान था लेकिन जब 1960 के दशक में दुनिया भर में भ्रष्टाचार और कुशासन के विरुद्ध छात्रों-युवाओं का जान-सैलाब उमड पड़ा था तब स्थापित समाजवादी और कम्युनिस्ट समूह आंदोलन के चरित्र को लेकर बहस करते रहे और तब तक सैलाब थम चुका था. भारत के हताश और निराश वाम-दल अगले सैलाब के इंतज़ार से अधीर होकर चुनाव से समाजवाद लाने का झाँसा देने लगे और उनमें से कई "रैकिंग द सिस्टम फर्म विदिन" के सिद्धांत के तहत काँग्रेस में चले गए और कुछ सोसलिस्ट और कम्युनिस्ट का चोंगा उतारे बिना इंदिरा गाँधी के साथ मिलकर गरीबी हटाने में जुट गए. सीपीआई तो सामाजिक साम्राज्यवाद की वर्चस्ववादी मुहिम में ब्रज्नेव के आदेश से इन्दिरा गाँधी की अपेंडिक्स बन गई. जयप्रकाश की वैज्ञानिक समाजवाद की यात्रा से शुरू हुई यात्रा भूदान के रास्ते आदर्शवादी अमूर्त दलविहीन जनतंत्र की दहलीज़ पर पहुँच कर अप्रासंगिक हो चुकी थी. नक्सलबाड़ी स ए उठी चिनगारी ने एक बार फिर युवा उमंगों को हवा डी और सोस्लिस्तोन-कम्युनिस्तोन समेत सभी इन युवा उमंगों को कुचलने में लग गए. भ्रष्टटाचार के खिलाफ एक बार फिर युवा उमंगों का स्व्स्फूर्त सैलाब उम्दा लेकिन इसके पास ना तो नेतृत्व था ना ही वैचारिक दृष्टि. ऐसे में छात्रों ने जयप्रकाश नारायण को नेतृत्व सौपा और दलविहीन समाजवाद में संघ का संप्रदायवाद समाहित हो गया और जो नेतृत्व उभारा उसे आज सुशील मोदी/नरेंद्र मोदी/लालू/नितीश .......कहते हैं. अण्णा हजारे का मामला अलग है. पहले से ही कोई जंसैलब नहीं उमद रहा बल्कि उनके गाँधीवादी निजी प्रयास से भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक जनचेतना बन रही है जिसे दिशा की जरूरत है. अण्णा हजारे के आंदोलन को हम सभी का समर्थन है लेकिन जो ख़ुद भी भ्रष्ट हैं वे भी समर्थन में उतर आए हैं उन्हें रोकना होगा.
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@रंजन शर्मा: शिक्षा का जेपी आंदोलन का ज्ञान अनुभव-जन्य ज्ञान नहीं है लेकिन मेरी समझ आंदोलन के एक सक्रिय कार्यकर्त्ता के रुप में है. आप बिलकुल ठीक कहाँ रहे हैं कि 1971 के युद्ध में विजय की तबाही के बाद महगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर छात्रों का स्वस्फूर्त आंदोलन शुरु हो गया. गुजरात में होस्टल मेस में भ्रष्टाचार से शुरु हुआ आंदोलन व्यापक होता गया चहु ओर व्याप्त भ्रष्टाचार और महँगे से उपजे जन असंतोष को अभिव्यक्ति का माध्यम मिल गया. अण्णा के आंदोलन को भी उसी जन असंतोष के चलते व्यापक समर्थन मिला जिसकी तुलना जेपी आंदोलन से नहीं की जा सकती. मै शिक्षा से सहमत हूँ कि वैचारिक दृष्टि की कमी के ही चलते इतना व्यापक आंदोलन कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं ला सका और सांप्रदायिकता को राजनैतिक सम्मान प्रदान किया और इस आंदोलन के जितने नेता जहाँ भी सत्ता में आए उन्होंने इन्दिरा-काल को भी भ्रष्टाचार में पीछे छोड़ दिया. उत्तर प्रदेश में हम लोगों ने छात्र संघों और छात्र संगठनों ने मिलकर एक छात्र महासंघ बनाने की योजना बनाई. इलाहाबाद में महादेवी वर्मा के घर बैठक हुई. जेपी की अध्यक्षता में हुई उस बैठक में राजनारायण भी थे और प्रदेश से बाहर से आए छात्र नेताओं में लालू और मोदी भी थे. संघिओ के दुराग्रह के चलते वैचारिक दृष्टि पर कोई सहमति नहीं बन सकी थी. उसी दिन पुरुशुत्तम दस टंडन पार्क में जेपी की मीटिंग हुई बारिश के बावजूद हजारों लोग सभा समाप्ति तक रुके रहे और जुलूस में शरीक हुए. उसके बाद आपात काल की कहानी और जनता शासन और पतन इतिहास बन चुका है.
और क्रांतिकारी परिवर्तन की अवधारणा वामपंथी ही होती है दक्षिणपंथी परिवर्तन की दिशा फासीवाद की तरफ़ होती है.
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